super swatantra

Tragedy

3.0  

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Tragedy

आखिरी पत्थर

आखिरी पत्थर

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मेरे ज़हन में ऐसा तो कभी नहीं हुआ था, जो आज की तारीख में हुआ कुछ समझ में नहीं आ रहा। सब एक दूसरे को शक की निगाहों से देख रहे थे मानो कल तक के दोस्त आज दुश्मन बन चुके हैं। पता नहीं आगे क्या होने वाला सब उस ख़ुदा को याद कर रहे हैं। 

पहली बार चिड़ियों की गिलहरियों की पत्तों की आवाज़ साफ सुनाई दी। दौड़ने भागने वाले सब शांत थे। मानव जाति जो अपने उत्कर्ष पर इतना इतराती थी आज बेबस मायूस कुछ नहीं कर पा रही हैं। 

मानो ऐसा लग रहा है जैसे धीरे-धीरे पूरी दुनिया खत्म हो जाएगी कोई भी नहीं बचेगा कोई भी। 

पत्थरों से शुरू हुआ यह सफर लगता है पत्थरों पर ही जाकर खत्म होगा। लेकिन वो आखिरी पत्थर कौन रखेगा। 


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