स्वतंत्र प्रयास
स्वतंत्र प्रयास
मेरी प्राइमरी मास्टर की नौकरी क्या मिली, मानो सब कुछ मिल गया। शुरुआत में ऊर्जा, उल्लास कर्मठता की कोई कमी नहीं थी।
80 किलोमीटर दूर से विद्यालय में आते ही सभी बच्चों का चिल्ला कर लिपट जाना मानो टॉनिक का काम करता था। विद्यालय की प्रार्थना कराते समय बच्चों अनुशासित बनाने के लिए मेरा फौजी मेजर बन जाना। कमाल था।
धीरे धीरे ये प्रयास सफल होता भी दिखाई दे रहा था। ग्रामीण अंचल के गरीब परिवारों से आने वाले बच्चे पढने से ज्यादा खेलना पंसद करते थे।
जब मिड डे मील का समय होता तो सभी दौड़ कर मेरे लिए खाना परोसने के आपस में लड़ते।
और जब विद्यालय की छुट्टी होने का समय जैसे जैसे बढ़ता सभी बच्चों का चेहरा मानो ऐसा उतर जाता जैसे बिटिया विदा करने जा रहे हो। और अंदर ही अंदर मैं भी मानो सच में विदा ले रहा हूँ
अगले दिन जल्दी आने का वादा करने पर ही फूल सी मुस्कान, और उनकी आंखों की चमक दोबारा मुझे टॉनिक देते। ऐसा करते करते कब छः वर्ष निकल गये पता ही नहीं लगा। नवजात प्रयास अब तरूण होने लगे और अचानक ही मेरा प्रमोशन कर ट्रांसफर आर्डर आ गया,मैं घबरा गया यदि इन बच्चों को ये पता तो ये टूट जायेंगे। अजीब से ख्यालों से दिमाग भरने लगा। बच्चों के साथ मिड डे मील खाते समय उनको सिर्फ ये बताया कि 3 महीने के लिए दूसरे विद्यालय में जाना है बस! सभी ने एक साथ बोला। जो बड़े बच्चे थे उन्हें समझाना आसान था। लेकिन कहीं न कहीं मैं स्वयं ही अपने आप को समझा नहीं पाया।
आज 3 साल हो गये उस ग्रामीण अंचल को छोड़े हुए, जिन प्रयासों के बीज बोए थे अब वे नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं।
वर्तमान में नया प्रयास उसी आनंद, ऊर्जा से नये नौनिहालों के साथ स्वतंत्र प्रयास आज भी जारी है और निरन्तर ।