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Lokendra Jajra

Tragedy Inspirational Thriller

4  

Lokendra Jajra

Tragedy Inspirational Thriller

आखिरी पार्सल : शांत ,एकांत ,सुशांत..!

आखिरी पार्सल : शांत ,एकांत ,सुशांत..!

4 mins
775

किरदार•••

सुनंदा : सुशांत की मां 

नेहा : गर्लफ्रेंड 

हरीश सुनील : नौकर 

अंकिता : एक्स गर्लफ्रैंड

 रॉकी : पालतू कुत्ता 

जैकी : सुशांत का कॉलेज समय का दोस्त


(दृश्य :सुशांत का फ्लैट ,बांद्रा मुंबई )

हरीश : भय्या आज कुछ ज्यादा ही गुमसुम लग रहे हैं , कॉफी लेने से भी मना कर दिये।

सुनील : तबीयत ठीक नहीं होगी शायद?

हरीश : तबीयत ठीक नहीं होती है ,तो बता देते हैं। सुबह रॉकी के पास बैठे बैठे अंकिता मैम की फोटो देखकर इमोशनल हो रहे थे यह दिन आम दिन जैसा ही था पर सुशांत की दिनचर्या में थोड़ा बदलाव था। समय का पाबंद सुशांत आज देरी से उठा और बगैर नाश्ते के अपनी बालकनी में बैठा रॉकी को सहला रहा था। अभी कुछ अरसा हो गया था सुनंदा को गुजरे हुए पर सुशांत को मां की कमी हर वक्त महसूस हुई ,खास तौर से अंकिता और वो जब से अलग हुए। सुशांत को लगा रेहा उसकी कमी पूरी कर देगी पर कभी कभार उसे अपने इस फैसले पर पश्चाताप होने लगता था। सुशांत बालकनी में बैठा बैठा अंकिता और अपने आखिरी बार मिलने को याद कर रहा था। अंकिता जो कि उसकी प्रेमिका तब से थी जब वह इस मायाजाल में घुसने और नाम कमाने के लिए संघर्ष कर रहा था।

अंकिता : सुश......

सुशांत : हं..अ......

अंकिता(रुहांसी सी) : मैं तुम्हारे बिना नही रह सकती .... प्लीज न....

सुशांत : अंकिता अब तुम्हे जाना चाहिए काफी लेट हो चुका है।

अंकिता(रोते हुए) : आई रियली लव यू....न प्लीज डोंट इग्नोर मी

सुशांत बिना कुछ कहे पीछे मुड़ के ऊपर चल लिया। 

पार्किंग में हुई छोटी सी मीटिंग अंकिता अंदर तक झकझोर हो गई और रोते हुए कार में बैठ गई ,पर ऊपर चढ़ते चढ़ते सुशांत को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। इस बात को करीब 2 वर्ष से ज्यादा हो गए।

इसी बीच बैंक ट्रांजेक्शन को लेकर रेहा का एक मैसेज सुशांत के फोन पर आता है ,पर सुशांत उसकी तरफ एक नजर फेर के फिर से अपने ख्यालों में खो जाता है।

( करीब दो वर्ष पहले : सुशांत के घर )

सुनंदा : बेटा अंकिता अच्छी लड़की है ,तू तो उसे काफी टाइम से जानता है।

सुशांत : हां तो ?

सुनंदा : हां तो क्या ? (दिखावटी गुस्से में )

सुशांत : हां तो ,क्या.....? (हंसते हुए)

सुनंदा : कुछ सोचा है ?

सुशांत : नही..., किस बारे में ?

सुनंदा : शादी ?

सुशांत : नहीं मां, अभी अभी कैरियर पर ध्यान देना है।

सुनंदा : कैरियर ,कैरियर ......यहां कौन नहीं जानता तुझे … …? देख ज्यादा लेट ठीक नहीं रहता।

सुशांत : कर लूंगा माँ ,अभी अब खाना दो पहले आप।

   तभी दो-तीन मैसेज और आते हैं पर सुशांत अपने ख्यालों में खोया हुआ था। रॉकी अपने मालिक की मायूसी दूर करने के लिए कभी दुम हिलाता, कभी हाथ चूमता।

इसी बीच हरीश आता है..

हरीश : भय्या.... एक पार्सल आया है। ऑनलाइन डिलीवरी वाला है ,नाम मेरा लिखा हुआ है शायद मेमसाहब भेजे होंगे। 

सुशांत : नहीं ....मैंने ही मंगाया है ,ले आओ।

हरीश पार्सल लाके टेबल पर रख देता है।

सुशांत बिना कुछ हलचल के अपने ख्यालों में था , पर रॉकी अपने मालिक के चुप्पी में भी प्यार पा रहा था। वो प्यार जिसकी आश सुशांत को रेहा से थी।

काश कोई गले लगा कर जी भर के रोने दे , बिना कुछ पूछे। मां के जाने के बाद सुशांत काफी अकेला हो गया था। उसे सहारे की जरूरत थी मगर जब प्यार सौदेबाजी में और इंडस्ट्री में दोस्ती धोखेबाजी में बदल गई , तो एक साधारण परिवार से बुलंदियों पर पहुंचे सुशांत के लिए यह असहनीय था।

सुबह से दोपहर होने को आई थी, सुनील ने बिना पूछे नाश्ता टेबल पर रख कर बोला : भय्या आप सुबह से कुछ नहीं खाए हो।

सुशांत : रॉकी को बाहर ले जाओ , मैं थोड़ा सो रहा हूं।

सुनील फिक्र में था पर हिचकिचाहट के कारण कुछ ज्यादा बोल नहीं पाया और रॉकी को बाहर ले गया।

शाम साढ़े छः बजे तक कई बार आवाज देने के बाद भी कुछ जवाब नहीं मिलने पर सुनील ने जैकी को कॉल किया, वह कुछ 15 मिनट में पहुंचा। तीन चार जनों ने मिलकर दरवाजा तोड़ने की सोची। सबके मन में एक ही डर था कि सुशांत की खामोशी कहीं सर्वदा ( हमेशा ) का रूप न ले ले। पर फिर फिक्र में जल्दी ही उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया।

सब स्तब्ध थे ,कुछ क्षण के लिए बिना हलचल के क्योंकि जिस बात का डर उन्हें कुछ देर पहले हो रहा था वह डर हकीकत का रूप ले बैठा था। तभी जैकी चिल्लाकर बोला देख क्या रहे हो जल्दी नीचे उतारो। (सुशांत ने अपने कमरे में पंखे के सहारे रस्सी बांध के अपने आप को मौत के गले लगा लिया )

 उन्होंने मिलकर सुशांत को नीचे उतारा , आनन-फानन में हॉस्पिटल लेकर गए जहां चिकित्सकों ने सुशांत को मृत घोषित कर दिया।

उधर पुलिस कमरे की जांच कर रही थी। सबूत इकट्ठा करके आत्महत्या की वजह का खुलासा करने के लिए। सब सबूत एक-एक करके पॉलिथीन में डाले जा रहे थे। एक पॉलीथिन में रस्सी देखकर हरीश को एहसास हुआ जो आखिरी पार्सल उसने सुशांत को दिया काश वो एक बार गुस्ताखी करके खोल कर देख लेता .......

कहानियां खत्म हो सकती

पर किरदार अमर हो जाते हैं।


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