आखिरी मुलाक़ात!
आखिरी मुलाक़ात!
एक चेहरा तो था लेकिन मायूस और उतरा सा, आखिरी बार आखिरी मुलाक़ात की थी।
जो मेरे लिए आखिरी पल के बराबर था। जैसे जैसे वो मेरी तरफ बढ़ रही थी, ना जाने क्यों बेचैनी का आलम उनकी आँखों में साफ़ दिखाई पड़ रहा था।
मैं तो बस उनके शांत और शर्मीली आँखों से रूबरू था, पर ये जो था कुछ और ही था, जो मेरे लिए पहली पहली बार था। वो हमें लगातार इस क़दर देख रहे थे कि, मानो उनकी आँखें अपनी फितरत भूल चुकी हो,
मानो उनके दर्दों ने उनके अश्क़ों से सौदा कर लिया हो।
अब हमारे बीच का फासला थोड़ा बढ़ गया था। वो मायूसी और उदासियाँ अब सिसकियों में बदल चुकी थी। वो आँसू मानो उनकी आँखों को निचोड़कर बाहर निकल रहे थे। आँखों में बेचैनी तो थी पर होठो पे कोई हरकत न थी।
कहने को बातें तो बहुत सी थी, पर कही अल्फ़ाज़ों का जनाजा निकल चुका था। अब मेरा सिर्फ हाथ उठा कर अलविदा कहना बाकी था, और उनका यूँ टूट कर बिखरना,
मैंने पहली बार देखा था।