आखिरी बार
आखिरी बार
"हैलो"
"हां दीदी"
"क्या कर रहा है तू ? अगर कोई एग्जाम नहीं हो तो आ जा। मेरी ननद हिना की शादी है। कुछ मदद भी करवा देना और थोड़े दिन हम दोनों भाई बहन साथ भी रह लेंगे"।
प्रवीण ने कुछ सोचते हुए कहा "वैसे तो मैं फ्री हूं दीदी। पर इतनी जल्दी आकर करूंगा क्या" ?
"मौज मस्ती करना और क्या ? तेरे जीजू की हैल्प करवा लेना। ज्यादा सोच विचार मत कर और आ जा। और अब दिन बचे भी कितने हैं शादी में" ?
"अच्छा , तो फिर मैं आता हूं"। प्रवीण ने जाने की तैयारी प्रारंभ कर दी।
अगले ही दिन प्रवीण उदयपुर पहुंच गया । झीलों की नगरी उदयपुर बहुत ही रमणीक जगह है। पिछोला झील और उसके बीचों बीच बना हुआ "लेक पैलेस" की छटा ही अनुपम है। इसके अलावा फतेह सागर लेक का व्यू भी बिल्कुल अलहदा है। मेवाड़ की चित्तौड़ के बाद की राजधानी का गौरव प्राप्त है उदयपुर को। वैसे भी प्रवीण इतिहास का विद्यार्थी था इसलिए उसे किले, महल, ऐतिहासिक स्थलों पर जाने में बड़ा ही आनंद आता था। अपनी दीदी की ननद हिना की शादी में शरीक होने के लिए तीन चार दिन पहले ही वह पहुंच गया था।
वहां उसने देखा कि दीदी की ससुराल की साइड के कुछ मेहमान वहां आये हुए थे। दीदी की बुआ जी , उनकी बेटियां , दीदी की बड़ी ननद , उनकी भी ननद वगैरह वहां पर पहले से ही आई हुई थीं। हिना की सहेलियां भी आ जाती थीं। वहीं पड़ोस में जो रहती थीं। हुस्न का मेला लगा हुआ था। इतने चांद एक साथ कभी देखे नहीं थे प्रवीण ने। वैसे तो कॉलेज वगैरह में देखे थे मगर वे सब अपरिचित थे। यहां तो सब "अपने" बताये जा रहे थे। प्रवीण को लगा कि बहारों का मौसम आ गया है। अब तो मस्ती ही मस्ती का आलम होगा।
प्रवीण के अधरों पर मुस्कान खेलने लगी। उसे पता नहीं था कि वह "हसीनाओं" के निशाने पर है। हंसी मजाक तो शादियों में होता ही है। रस्सा कसी इस बात की रहती है कि भारी कौन पड़ता है ? हिना बहुत मजाकिया किस्म की लड़की थी। दीदी की ननद थी इसलिए दोनों में संबंध भी छेड़खानी वाला ही था। हिना ने छेड़ते हुए कहा "और हीरो ! आजकल किस हीरोइन के साथ रोमांस चल रहा है" ?
प्रवीण को ऐसी छेड़छाड़ में बड़ा आनंद आता था। हिना के पास में अदिति, उसकी बुआ की लड़की, दिव्या, दूसरी बुआ की लड़की , रश्मि, उसकी बड़ी बहन की ननद और उसकी तीन चार सहेलियां बैठी थीं। सब एक से बढ़कर एक हसीनाएं थीं। सबके अधरों पर खिलखिलाहट थी। शादी में मुस्कान से काम नहीं चलता, खिलखिलाहट के बिना मजा नहीं आता है। बिना बात खिलखिलाना ही तो लड़कियों की आदत होती है ऐसे माहौल में। और अगर लड़कियों का पूरा झुंड हो और उस झुंड में कोई एक लड़का फंस जाये तो उसका शिकार तो बनता ही है। आखिर शेरनियां भूखी जो ठहरीं।
प्रवीण ने माहौल भांप लिया था। बोला "एक के साथ चल रहा हो तो बताऊं , किस किस का नाम लूं यहां पर" ?
"ओहो ! आप तो पूरे खिलाड़ी निकले। हम तो अनाड़ी समझ रहे थे"। सब लड़कियां एक साथ जोर से हंसीं।
प्रवीण झेंपा नहीं बल्कि लोहा लेने के लिए आगे बढ़ा। "क्या करोगी जानकर" ?
"अरे , हम तो बस यह जानना चाह रहे हैं कि जनाब को अभी तक किसी "घोड़ी" ने दाना पानी डाला भी है या नहीं" ? धीरे धीरे लड़कियां अनौपचारिक होने लगीं।
"लड़कियां क्या दाना पानी डालेंगी मुझे ? वे तो खुद ही खिंची हुई चली आईं हैं ? अपनी तो जिंदगी में बहार ही बहार है"। प्रवीण उन्हें चिढ़ाते हुए बोला। लड़कियों की एक आदत होती है कि उनके सामने यदि किसी और लड़की की तारीफ कर दी जाती है तो वे जल भुनकर राख हो जाती हैं। यह सब साइकोलॉजी का खेल है जो प्रवीण अच्छी तरह से जानता है। वह जानता है कि वाकई आज तक किसी ने भी उसे घास नहीं डाली थी मगर यहां डींगें हांकने में कोई पैसा थोड़े ही खर्च हो रहा है ? तो लगे रहो मुन्ना भाई।
लड़कियां कोई कम थोड़ी ना थीं। तपाक से बोली "ये मुंह और मसूर की दाल" ? और सब उसकी ओर इशारा कर के जोर से हंस दीं। अदिति बोली "अपना थोबड़ा देखा है कभी आईने में " ? फिर वह दिव्या की ओर मुड़कर बोली "अरे दिव्या , जरा आईना तो लेकर आना ? आज इस बंदर को अपनी हकीकत तो पता चले। जैसे नारद मुनि को पता चली थी"। और एक बार फिर जोर से ठहाकों की आवाज में प्रवीण की आवाज दब सी गई थी।
प्रवीण भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था। ऐसे कैसे हथियार डाल देता ? और फिर इतने सारे हसीन चेहरों के बीच ऐसी मीठी छेड़छाड़ तो हर लड़के का ख्वाब होती है। इससे बढ़कर और क्या आनंद होगा ? अमृत कलश छलकने को तैयार है बस, हाथ बढ़ाकर अधरपान करने की जरूरत है। मगर अमृत कलश इतनी आसानी से थोड़ी ना मिलता है ? दिल जीतना पड़ता है , तब जाकर बात बनती है।
प्रवीण एक जोरदार "आह" भरकर बोला "दिव्या जी को क्यों कष्ट दे रही हैं आप ? जरा अपनी आंखें पूरी खोल दीजिए। हम तो इनमें ही अपनी शक्ल देख लेंगे"। और उसके लबों पर गजब की मुस्कान फैल गई।
इस जवाब पर भी सब लड़कियां ठठाकर हंसीं। अब रश्मि बोली "लगता है कि आंखों के आईने में चेहरा देखने का शौक है जनाब को ? कितनी आंखों में देखा है अपना चेहरा" ?
"अभी तो चार पांच आंखों में ही देख पाये हैं। हां, अगर आप सभी हसीनाएं अपनी आंखों का रुख हमारी ओर कर दें तो आज हम भी धन्य हो जायें"।
इतने में प्रवीण की दीदी उसके लिये चाय नाश्ता ले आई। "तुझे ये लड़कियां परेशान तो नहीं कर रही हैं ना" ?
"इनमें इतनी औकात कहाँ है जो मुझे परेशान करें"। प्रवीण उनका उपहास उड़ाते हुए बोला। उसे पता था कि अब माहौल बन चुका है। लड़कियां अपनी लय में आ रही हैं। इन्हें और उकसाने की आवश्यकता है। इसलिए उसने गर्म लोहे पर हथौड़ा मार दिया था। बड़ा भयंकर वार था यह। सब लड़कियां तिलमिला गईं थीं।
"चैलेंज कर रहे हो क्या" ? एक स्वर से बोली लड़कियां।
"हां, चैलेंज कर रहा हूं। है हिम्मत तो स्वीकार करो इस चैलेंज को" ? प्रवीण ने अंगद की तरह अपना पैर गाढ़ दिया था।
लड़कियों में कानाफूंसी शुरू हो गई। कुछ लड़कियां चाहती थीं कि यह बातचीत आगे बढ़ती रहे मगर कुछ लड़कियां आगे बढ़ने से डर रही थीं। उनमें आपस में कानाफूसी में वार्तालाप होने लगा।
प्रवीण को यह मौका मिल गया। उसने एक और भरपूर वार करते हुये कहा "वैसे ही शेरनी बन रही थीं क्या ? हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और ? डरपोक कहीं की ? चैलेंज दे रही थीं मुझे"। सब पर गहरी निगाह डालकर प्रवीण बोला।
दुल्हन हिना ने कहा "कम ऑन गर्ल्स ! आज इस मजनूं का बैंड बजाकर ही दम लेना है तुमको। इसको दिन में ही तारे दिखा दो सब। बहुत उड़ रहा है हवा में"।
प्रवीण ने भी नहले पर दहला मारते हुए कहा "है हिम्मत तो आगे आओ वरना मान लो कि तुम लोग हार गए हो"।
हार के नाम पर कोहराम मच गया। सब लड़कियां प्रवीण पर पिल पड़ीं "हारे हमारी जूती। क्या समझते हो अपने आप को मिस्टर" ?
"हम तो अपने आपको शहजादा सलीम समझते हैं। मगर तुम ये बताओ कि तुम में से अनारकली कौन है" ?
फिर एक जोरदार ठहाका लगा। तपाक से लड़कियां बोली "कोई नहीं है यहां अनारकली। जो अनारकलियां थीं उदयपुर में वे तो सब डिस्को चली गयी हैं। तो मिस्टर आशिक , अब तुम भी खिसक लो यहां से"। हिना की एक सहेली पूजा बोली।
"हां जी। हम तो खिसक लेंगे अगर तुम हमारे साथ साथ खिसको तब ? बताओ कहाँ चलना है " ?
अब की बारी प्रवीण की थी। यह सुनकर पूजा शरमा गई और गर्दन नीची करके हंसने लगी।
इतने में दीदी का बुलावा आ गया और प्रवीण यह कहकर चला गया "मैच अभी खत्म नहीं हुआ है। आकर मैं ही खत्म करूंगा"। और वह मुस्कुराते हुए चला गया।
सब लड़कियों ने गुप्त मंत्रणा की और प्रवीण को सबक सिखाने की योजना बनाई।
शाम को जब प्रवीण आया तो उसे खाने के लिये बुलाने को सभी लड़कियां आ गईं। प्रवीण की तो पौ बारह हो गई। इसका मतलब अभी तक मैच चल रहा है। उसने सोचा। और वह उनके साथ हो लिया।
लड़कियां उसे एक कमरे में ले गईं और सामने बिछी चारपाई पर बैठने के लिए कहा। प्रवीण को दाल में कुछ काला लगा। वह बोला "आप लोग इस चारपाई पर बैठो , मैं चेयर पर बैठ जाता हूँ"।
लड़कियों को अपनी योजना फेल होती नजर आई तो वे तपाक से बोलीं "नहीं नहीं। आप यहां चारपाई पर आराम से बैठो और चैन से खाना खा लो। बाद में हंसी मजाक कर लेंगे"। और लड़कियों ने उसे जबरदस्ती चारपाई पर बैठा दिया।
प्रवीण भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था। उसने खतरा भांप लिया था और अपने दोनों ओर खड़ी दो लड़कियों के हाथ कसकर पकड़ लिये। चूंकि चारपाई पर निवार नहीं बुनी हुई थी। खाली चारपाई थी जिस पर केवल दरी और चादर बिछी हुई थी इसलिए जैसे ही प्रवीण उस पर बैठा , धड़ाम से नीचे गिर पड़ा।
सब लड़कियां जोर से हंसीं। मगर यह क्या ? चूंकि प्रवीण ने दोनों लड़कियों के हाथ पकड़ रखे थे इसलिए वे दोनों लड़कियां भी उसके ऊपर आ गिरी। प्रवीण को तो मुंह मांगी मुराद मिल गई। दोनों लड़कियों के बदन प्रवीण के बदन से टकरा रहे थे। वे झेंप गईं और बाकी लड़कियां सहम गईं। ये क्या हो गया ? मगर अब क्या हो सकता है ? जो आदमी औरों के लिए गड्ढे खोदता है, एक दिन वह भी वह भी उस गड्ढे में अवश्य ही गिरता है।
उन्होंने खड़े होने की कोशिश की मगर प्रवीण ने कसकर हाथ पकड़ रखे थे इसलिए खड़ी नहीं हो सकीं थीं। बाकी की लड़कियों ने उनके हाथ पकड़ कर कर उन्हें उठाया। प्रवीण वहीं गिरा पड़ा था। लड़कियों ने उसे वहीं पड़ा छोड़ दिया तो हिना ने कहा "भई ये गलत बात है। माना कि वह विरोधी खिलाड़ी हैं , मगर है तो खिलाड़ी ही। उसे भी तो उठाओ"।
दिव्या ने अपना हाथ प्रवीण की ओर बढ़ाया। प्रवीण ने वह हाथ पकड़ा और एक जोर का झटका दिया। दिव्या कटे पेड़ की तरह भरभराकर उसके ऊपर आ गिरी।
अब हंसने की बारी प्रवीण की थी "कहो कैसी रही" ?
दिव्या बेचारी को काटो तो खून नहीं। अपनी झेंप मिटाने के लिए वह प्रवीण की छाती में मुक्के मारने लगी। सबने मिलकर दोनों को बाहर निकाला।
खाना लग गया था। खीर खाने के लिए जैसे ही प्रवीण ने एक चम्मच मुंह में दिया तो प्रवीण को अपनी नानी याद आ गई। चीनी के बजाय नमक डाला गया था खीर में। अब ना उगलते बना और ना निगलते। एक क्षण को प्रवीण का मुंह खुला का खुला रह गया।
उधर से जोरदार ठहाके लगे और एक जोरदार नारा लगाया गया "जो हमसे टकरायेगा। नमक वाली खीर खायेगा"। फिर ठहाका।
प्रवीण उस खीर को जैसे तैसे निगल गया। अब उसे बाकी के व्यंजनों पर विश्वास नहीं था। इसलिए वह खड़ा हो गया और वाश बेसिन पर हाथ धोने लगा।
इस घटना से सब लड़कियां सकते में आ गई। किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि प्रवीण ऐसा करेगा। सब लड़कियां "सॉरी, सॉरी" करके माफी मांगने लगीं। इतने में प्रवीण की दीदी आ गई और प्रवीण की भरी थाली देखकर बोली "ये क्या किया तूने ? झूठा कबसे छोड़ने लगा है तू" ?
इशारों से लड़कियां कह रही थीं कि दीदी को मत बताना , ये हमारा आपस का मामला है। प्रवीण ने भी बात संभालते हुये कहा "अभी तो हाथ साफ कर रहा हूं, खाना तो अब खाऊंगा"। और दीदी मुस्कुराती हुई चली गईं। लड़कियों की भी जान में जान आ गयी।
अब प्रवीण खाने पर तो बैठ गया मगर रश्मि को अपने सामने बैठा लिया। पहले रश्मि को खिलाता। फिर खुद खाता। इस तरह उसनें अपना बचाव किया।
दूसरे दिन उनका हंसी ठिठोली का कार्यक्रम बरकरार रहा। अचानक प्रवीण ने कहा "अरे आजकल एक नई मूवी लगी है RRR चलो उसे देखने चलते हैं। तीनों चारों लड़कियों ने हामी भर दी। शाम को फिल्म और फिर किसी रेस्टोरेंट में खाने का प्रोग्राम बन गया।
सिनेमा हॉल में प्रवीण के एक तरफ दिव्या और दूसरी तरफ रश्मि बैठी थी। फिल्म के दौरान प्रवीण ने दिव्या का हाथ अपने हाथ में ले लिया। दिव्या ने कोई विरोध नहीं किया। बहुत देर तक दोनों एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले फिल्म देखते रहे। प्रवीण ने दिव्या के हाथ को हलके से दबाया तो दिव्या ने भी उसका जवाब दे दिया।
इंटरवेल के बाद दूसरे हाफ में प्रवीण को लगा कि उसके पैरों पर किसी का पैर है। उसने नीचे झुककर देखा तो पता चला कि वह पैर रश्मि का है। प्रवीण ने रश्मि की आंखों में देखा तो उसे वहां पर खुला निमंत्रण मिला। उसने उस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और उसका दांया हाथ भी हरकत में आ गया।
फिल्म समाप्त हुई। वे लोग रेस्टोरेंट में गये और खाना खाने लगे। अब दिव्या और रश्मि दोनों ही प्रवीण पर लाइन मारने लगीं। प्रवीण असमंजस में पड़ गया। किस को चाहे ? दोनों ही खूबसूरत हैं। दोनों ही बिंदास हैं। दोनों का व्यवहार भी बहुत अच्छा है। वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि दोनों में से किसे जीवन संगिनी बनाया जाये।
इस काम में उसने अपनी दीदी की मदद लेना उपयुक्त समझा। उसकी दीदी समझदार थी। कहा "अभी दो दिन और देख ले। फिर बात करेंगे"।
इन दोनों दिनों में और भी लड़कियों का झुकाव उसने महसूस किया। प्रवीण तो "कन्हैया" बन गया था यहां। सब लड़कियों का चहेता। अब क्या करे ?
उधर, शादी के बाद लड़कियों के झुंड में अफरा तफरी का माहौल था। सब लड़कियां अलग अलग नजर आ रही थीं। सबको सबके कारनामों की भनक लग गई थी। एक प्रवीण और लड़कियां पांच। सब लड़कियां प्रवीण को चाहती थीं। प्रवीण तय नहीं कर पाया कि वह किसे चाहता है ? शादी के बाद वह किसी को बताये बिना ही वापस लौट आया। उसे आखिरी बार देखा गया था वहां पर।

