आखिर स्कूल खुल गया
आखिर स्कूल खुल गया
आज वो बहुत खुश थी। और हो भी क्यों ना, स्कूल जो खुल रहे थे। बहुत दिन हो गए थे, घर पर बैठे हुए। गुड्डे गुड़ियों से खेलते खेलते वह उकता चुकी थी। उसको चिंता थी, अपने छोटे भाई और बीमार बूढ़ी दादी की। उसने तैयारियां शुरू कर दी। आखिरकार स्कूल खुलने का भी दिन आ गया। सुबह सुबह वह स्कूल के लिए निकली। लेकिन स्कूल बस्ते की जगह उसके पास एक पतीला था, स्कूल ड्रेस की जगह , साधारण लेकिन साफ सुथरे कपड़े पहने हुए थी। वह स्कूल के अंदर नहीं गई। स्कूल के बाहर तयशुदा जगह अपना पतीला लेकर बैठ गई । हाँ , वह अपने हम उम्र बच्चों को चटपटे उबले हुए बेर बेचती थी
जी हां , स्कूल खुल गया था और वो बहुत खुश थी ।