आज से हम ही तेरे माता पिता है

आज से हम ही तेरे माता पिता है

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"कहाँ जाऊँ? क्या करूँ?" मेट्रो ट्रेन की बोगी के एक कोने में दुबक कर बैठी तेरह साल की राधिका के मन-मस्तिष्क में घमासान मचा हुआ था।

रिश्ते नातों की जाल में बुनी इतनी बड़ी दुनिया में उसका कोई भी रिश्तेदार नहीं।

कभी रोती कभी सिसकती कभी भावनाओं का सागर समेटे कभी पाषाण बन तो कभी झाँसी की रानी बन नथुनों को फूला फुँफकार उठती।

"परेशान सी दिख रही हो! क्या हुआ बेटी? अकेली हो? तुम्हारे घर परिवार वाले कहाँ हैं?"

अपने पति के साथ बगल की सीट पर बैठी दुलारी देवी पूछ बैठी।

"जी! मेरा कोई भी नहीं है इस दुनिया में!"

"मतलब?"

बाल सुधार गृह वाले कहते थे कि मैं उन्हें दो वर्ष की उम्र में स्टेशन पर रोती हुई मिली थी। आज तक किसी ने खबर नहीं ली। वहाँ की सभी लड़कियाँ अनाथ ही हैं।

"तो तुम यहाँ कैसे आई?"

"भागकर!"

"क्यों?"

"अगर नहीं भागती तो कईयों की तरह मेरे जिस्म की भी ख़रीद बिक्री शुरू हो जाती।"

तभी अनाउंसमेंट हुई-

भटिंडा बालिका सुधार गृह से सातवीं कक्षा की एक राधिका नाम की लड़की भाग गई है यदि आपके आस पास कोई अंजान लड़की दिखे तो मोबाइल नम्बर 9090559741 पर तुरंत सूचित करें या पुलिस को खबर करें।

दुलारी देवी नें तुरत अपना शाल उसे ओढ़ाती हुई बोली-

अब तू जरा भी फ़िक्र न कर बेटी! आज से हम ही तेरे माता पिता हैं! और तू हमारी इकलौती सन्तान है। और हाँ कोई पूछे तो अपना यह नाम पता तुरत बताना-

निर्मल कुमारी

पिता-रामबृक्ष मिस्त्री

माता- दुलारी देवी

ग्राम-शंकरपुर

जिला गया बिहार

राधिका बगैर कुछ बोले माँ की गोद में सर रखकर एक बार फिर सिसक सिसक कर अपने कलेजे को ठंडक पहुँचाने लगी। दुलारी देवी अपने पति के साथ पुचकारती उसके सर पर हाथ फेरे जा रही थी।


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