आइसोलेशन
आइसोलेशन
"हेलो... हेलो... सुमित, सुन मेरी आवाज आ रही है?"
"हां, हां, भाईसाब, आप बोलिए। इधर बिल्कुल साफ आवाज आ रही है। आप बताइए, कैसे हैं आप? कितने दिनों बाद याद किया..."
"सुन सुमित, तू... तू कोर्ट में है ना?"
"हां, भाईसाब, कोर्ट में हूं। कोई काम था क्या? पर इस समय तो काम लगभग ठप्प पड़े हैं। आपकी डेट थी इधर?"
"हां, काम तो... था... नहीं, प्रॉपर्टी वाला नहीं। सुन ना, सुमित, तू लौटते हुए एक फॉर्म ले आएगा?"
"फॉर्म??"
"हां, वो... वो.... तू वो मुझे एक मैरेज रजिस्ट्रेशन का फॉर्म लाकर दे पाएगा?"
"भाईसाब......"
"देख तू अभी कुछ मत बोल.... बस मुझे जितनी जल्दी हो सके फॉर्म ला दे।"
"पर भाईसाब, आप जानते हैं अभी जो हालात हैं... अभी शादी ब्याह सब स्थगित कर दिए गए हैं। ऐसे में..."
"हां, तो मुझे कौन सी बरात निकलवानी है... रजिस्ट्रेशन में क्या समस्या है? कोई भीड़ इकट्ठी नहीं होगी।"
"लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा हूं, भाईसाब। इतनी हड़बड़ी क्यों? मेरा मतलब है, एक बार स्थिति सामान्य हो जाती..."
"तू समझ नहीं रहा, यार। बहुत ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते।"
"मैं सचमुच ही नहीं समझ पा रहा। इस सिचुएशन में आप...
भाईसाब, भाभी के बाद इतने साल आपने अकेले काट लिए। फिर अब... मैं सचमुच नहीं समझ पा रहा हूं आपकी इस जल्दबाजी की वजह।"
"सुन सुमित, ऐसा है कि रिया मान गई है। और देख, मुझे डर है कि अगर..."
"रिया?"
"हां, रिया। तुझे बताया था ना। तू मिला भी तो था ना उस रोज जब घर आया था..."
"हां, भाईसाब, मुझे याद है। पर आपने तो कहा था कि उसने इनकार कर दिया है...."
"हां रे, मना तो कर ही दिया था। कितनी बार मनाया फिर भी...मुझे लगा था उसकी लाइफ में कोई और है। पर कहां, सारा वक़्त तो वो मेरे साथ ही बिताती थी।फिर मुझे लगा कि उम्र का ये फासला उसे सताता है। पर फिर मैंने देखा कि बाजार में, सड़क पर, पार्क में सभी जगह वह मेरे साथ इतनी सहज है जितना शायद मैं भी नहीं हो पाया कभी। फिर भी जब जब मैंने शादी की बात कही, उसने इनकार कर दिया। कहा कि मैं शादी के लिए बनी ही नहीं।" मैंने सोचा कि इस जेनरेशन को तो फैशनेबल लगता ही है ये कहना कि मैं मैरिज टाइप नहीं हूं... तो मैंने उसे कभी गंभीरता से लिया ही नहीं।मैंने उसे फिर कहा, फिर फिर कहा। हारकर यह तक कह दिया कि कम से कम हम साथ तो रह सकते हैं। न करो शादी अगर नहीं चाहती हो। यहां आ जाओ।पर उसने वो भी स्वीकार न किया। कहने लगी, श
ादी या नो शादी, साथ रहने पर बात तो वही हो जाती है ना। हर रोज कोई सर्टिफिकेट थोड़े ही देखता है। कुछ दिनों में सब एक सा लगने लगता है.।मैं थक गया था, सुमित। उसे कहते कहते... और थक गया था अकेलेपन से भी। पर वो नहीं मानी, सुमित। नहीं मानी।"
"फिर अब?"
"अब........."
"हां, भाईसाब, अब कैसे?"
"सुमित, तूने पिछले हफ्ते वो खबर देखी थी.... आइसोलेशन सेंटर में एक महिला के साथ...."
"भाईसाब, वो .............."
"वो रिया थी................."
"हे भगवान.......... भाईसाब, वो... वो ठीक तो हैं ना?"
"ठीक!!? शारीरिक रूप से, हां... मानसिक... वो ... सुमित..."
"ओह......... वो लौट आईं क्या अस्पताल से? मैं मिल आता..."
"वो ठीक है, सुमित। तू सुन ना, तू मुझे बस वो फॉर्म ला दे.."
"फॉर्म??? क्या??..... ओह... ओह हां... पर.. फॉर्म? इस वक़्त?"
" वो... उसने कहा... शी हेट्स हरसेल्फ... कहा कि सब तरस खाएंगे उस पर... कभी कोई सामान्य व्यवहार नहीं कर पाएगा.. और फिर वो कभी नॉर्मल नहीं रह पाएगी।मैंने उसे यकीन दिलाया, सुमित, कि मेरा व्यवहार कभी नहीं बदलेगा। कि मैं उसकी तकलीफ में शामिल हूं। पर वो आज भी मेरे लिए वही है जो एक हफ्ते पहले थी। जख्म हैं, भर जाएंगे। मैंने उसे कहा अकेले रहना अभी तुम्हारे लिए ठीक नहीं। बेकार के ख्याल तुम्हें परेशान करेंगे... किसी को अपने पास बुला लो.. या चाहो तो मेरे साथ...."
"और वो मान गईं?"
"हां, सुमित, वो मान गई। वो मान गई। मैं उसे हमेशा खुश रखूंगा। हमेशा उसका ख्याल रखूंगा।"तू चुप क्यों है, सुमित? तू खुश नहीं है मेरे लिए?"
"मैं? मैं खुश हूं भाईसाब। पर क्या रिया खुश रहेंगी?"
"क्या मतलब है तेरा?"
"मतलब आप जानते हैं, भाईसाब। आपने उन्हें उस चीज के लिए राजी कर लिया जो वो सामान्य स्थिति में कभी नहीं करती। आपने उनके कमजोर क्षणों में......."
"बस करो, सुमित......"
"ये ठीक नहीं है, भाईसाब....."
"सुमित, अगर तुम मेरी मदद कर सकते हो तो करो वरना तुम जानते हो, मैं किसी के आसरे नहीं हूं।"
" आसरे तो रिया भी नहीं है, भाईसाब। हां, अभी वो टूटी हुई हैं। तकलीफ में हैं। पर समय के साथ वो उबर आएंगी। आप मदद कर सकते थे। पर इस तरह...."
"सुमित................"
"आपसे ये उम्मीद नहीं थी, भाईसाब...."
"सुमित......."
"..............."
"सुमित..... सुमित....... सुमित..... हैलो.... हैलो..... उफ्फ.."