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ज़िन्दा रहने का खेल

ज़िन्दा रहने का खेल

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खुदा अगर हैं तो वह
बड़ा ही विनोदी स्वभाव का होगा , शायद
तभी तो उसने अपने जैसा, अपने जहाँ जैसा, 
नही रचा ये जहाँ, 
शायद खुशी मिलती होगी 
इंसानो की उर्फ आदमियों की इस दुनिया से,
क्षणभंगूरता से, 
और भला सिनेमा किसे नापसंद है!
मैं नही मानता वह कभी नाराज़ होता होगा,
अपने बन्दो से,
सब उसके ही तो हैं , उसी की कृति, उसी के विचार,
फिर भला नाराज़गी कैसी?
जन्नत-दोजख कैसी?
अच्छा-बुरा क्या?
खेल है! खेल है! सब खेल है!
और खुदा नहीं हैं....
तो
सच में , असलियत में ,
सब खेल है,
ज़िंदा रहने का खेल हैं......


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