ज़िंदा रहे इंसानियत
ज़िंदा रहे इंसानियत
मैं करने चला इबादत अपनी छोड़कर इंसानियत,
न मंदिर मिला न मस्जिद मिली रह गई हैवानियत,
मैं लड़ता रहा झगड़ता रहा खुद को सही समझता रहा,
भूल गया था कुछ जरूरी है तो सिर्फ इतना,
मैं ज़िंदा रहूं या ना रहूं पर ज़िंदा रहे इंसानियत।
