STORYMIRROR

RAMAN KHOSLA

Inspirational

2  

RAMAN KHOSLA

Inspirational

ज़िंदा रहे इंसानियत

ज़िंदा रहे इंसानियत

1 min
112

मैं करने चला इबादत अपनी छोड़कर इंसानियत,

न मंदिर मिला न मस्जिद मिली रह गई हैवानियत,

मैं लड़ता रहा झगड़ता रहा खुद को सही समझता रहा,

भूल गया था कुछ जरूरी है तो सिर्फ इतना,

मैं ज़िंदा रहूं या ना रहूं पर ज़िंदा रहे इंसानियत।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational