STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

यमराज की चिंता

यमराज की चिंता

3 mins
9

हास्य-व्यंंग्य  यमराज की चिंता  *************** सुबह सबेरे मित्र यमराज ने फोन किया  और बिना किसी औपचारिकता के पूँछ लिया  कहो प्रभु! आपके अपने कितने हैं? मैंने भी घमंड से उत्तर दिया  गिनती में बताऊँ या नाम गिनाऊँ? गिनती कम पड़ जाएगी  नाम से डायरी भर जायेगी। यमराज ने व्यंग्य से कहा - मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ प्रभु आपको सच का आइना दिखाना चाहता हूँ, इसलिए घमंड से नहीं ईमानदारी से बताइए। उसकी बात सुन मैं गंभीर हो गया  और कहा - तूने तो मुझे फँसा दिया। यमराज मजाक उड़ाते हुए बोला -  क्यों? क्या हुआ? औकात में आ गए? अब मेरी बात ध्यान से सुनिए  और उस पर चिंतन मनन कीजिए  आपके लोक में कोई भी अपना नहीं है  सबके अपने-अपने निहित स्वार्थ हैं जिसका जितना स्वार्थ है , वो उतना ही अपना लगता है, जैसे स्वार्थ वश गधे को भी बाप कहना पड़ता है। आप तो कविता, कहानियां, लेख, आलेख लिखते हो पर मुझे तो लगता है कि दिमाग से एकदम पैदल हो तभी तो सालों में भी समझ नहीं पाये। बड़े अफसोस से कह रहा हूँ आपने अपने यार का दिल दुखाया,  इतने दिनों में पालतू तोते की तरह रटाया  उस पर भी अपने पानी फिराया। भगवान आपका भला करें- जो इतना भी अकल नहीं आया, और मुझे चिंता में डाल मेरा काम बढ़ाया। आपसे तो कुछ होने से रहा  मैं यमलोक से ही इसका उपाय खोजता हूँ यहीं से एक ट्यूटर का प्रबंध किए देता हूँ, जो नियम से जायेगा, आपको पढ़ाएगा  सलीके से पढ़ना, ज्यादा चूँ -चपड़ मत करना  वरना कान के नीचे बजायेगा, उठक-बैठक भी कराएगा,  मुर्गा बनाएगा, कुक्कड़ुक-कूँ कराएगा ज्यादा दिमाग मत चलाना -आपके झाँसे में नहीं आयेगा। वैसे भी इतना ही दिमाग होता  तो आज ये दिन ही क्यों देखना पड़ता? हम-दोनों में याराना नहीं होता  आपकी चिंताओं का बोझ बेवजह मुझे ढोना नहीं पड़ता।  मेरा दिमाग घूम गया और मैं चिल्लाया  अब तू फोन रख और मेरी चिंता छोड़  क्योंकि तू इतना होशियार तो कभी नहीं हो सकता। उसने मुझे चिढ़ाया- वाह प्रभु! ऐसा कैसे हो सकता है?  मैं जो कहता हूँ, चुपचाप सुनिए और समझदार बनिये। वो आपका चाय पानी भी नहीं पियेगा, फीस तो भूलकर भी नहीं मांगेगा  यमलोक आकर मेरा ही सिर खायेगा मुझे ही आर्थिक चूना लगायेगा, मगर अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभायेगा। तभी तो भ्रम से बाहर लाकर  आपके दिमाग की बत्ती जला पायेगा, फ्यूज हुआ तो नया लगायेगा  तभी तो बड़े ईनाम का हकदार हो पायेगा। आखिर मेरे मित्र का सवाल जो है  बेचारा समझौता भी तो नहीं कर पायेगा  आखिर यमलोक में उसे रहना भी तो है  भागकर वो जा भी कहाँ जा पायेगा? तभी तो मेरे सिर से आपकी बेवकूफी का भारी-भरकम बोझ उतार पायेगा, तब हमारी मित्रता में एक नया अध्याय जुड़ जायेगा। आपके कथित शुभचिंतकों में  मेरे लिए दुश्मनी का भाव बढ़ जायेगा सच मानिए प्रभु? तब और मजा आयेगा, हम दोनों का भाव बढ़ जाएगा। सुधीर श्रीवास्तव 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract