यकीन
यकीन
यूं तो इतना नहीं झगड़ते थे हम
उन दिनों में क्या से क्या हो गए थे
लेकिन इतना वक़्त गुज़ारा भी
पहली बार था
रोज़मर्रा में पहली दफा देखा
था तुम को
आदतों से वाक़िफ़ होने में थोड़ा
वक़्त तो लगेगा
समझ फिर थोड़ा देर से आया
जब तुम मेरी ही ग़लती पे मुझे ही
मना रहे थे
मेरी ही ग़लती पे खुद माफ़ी मांग के
बात खत्म कर देना चाहते थे
जब आदतों से ज्यादा जरूरी
वो लड़ाई थी जो हम कर रहे थे।
क्योंकि लड़कर तुमसे, तुम्हें मुझे
मनाते देख कर
जो खुद की तकदीर पे यकीन हुआ है
की उसके घर में देर हो सकती है,
लेकिन अंधेर नहीं
बनाया है उसने सबके लिए कोई ना कोई
हर मोड़ पे जो उससे उसको
जीने का एहसास दिलाता रहे।