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Ritika Chaudhari

Abstract

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Ritika Chaudhari

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पूछ लूं?

पूछ लूं?

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कुछ तो खफा से हो तुम

यूं ही नहीं नाराज़ होते थे।


नादानियां करते करते

कब गलतियां हो गईं 

ना वक़्त ने टोका 

और तुम भी चूक गए।


गए वो दिन जब सुबह हो जाती थी 

फोन पर ही,

अब तो सुबह बस ऑफिस

जाने में लग जाते हो तुम।

थोड़ा जल्दी बड़े हो गए तुम 

वक़्त ने थोड़ा रुककर

सांस लेने नहीं दिया। 


सिर्फ इस काग़ज़ पर बता सकती हूं 

क्यूंकि खयाल तो आता है

दिन में कई दफा

अगर खाली बैठ जाऊं तो


खाना खाया होगा ? 

पूछ लूं ? 

खाया ही होगा

अगर ऑफिस गया होगा। 


तबीयत तो ठीक है ना उसकी ? 

पूछ लूं ? 

अगर नहीं होगी भी तो कौनसा

बता देगा वो किसी को। 


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