ये रात फिर ना आयेगी
ये रात फिर ना आयेगी
ये रात फिर ना आयेगी, सुन- ये चाँद कह रहा है,
रूक जा ठहर जा कुछ पल, साथ चलने के लिये,
उम्र है ज़्यादा, अपना बनाने के लिये।
ज़िन्दा रहने के लिये तुम्हारी
आखोँ की मुस्कुराहट ही काफ़ी है।
अपना बनाने के लिये,
तुम्हारे होठों की तलाश काफ़ी है।
सरूर सा वजूद में है छाये
अपना बनाने के, लिये इतना ही काफ़ी है
आयेगी फिर मिलन की अद्धभुत बेला,
ख़ुश रहने को इतना काफ़ी है।
तारूफ हो खुद का तेरे लिये,
आरज़ूओ में बसना ही काफ़ी है।
प्रेम के दीपक जल उठे मन -आगँन,
प्राण -उर्जा का जगना ही काफ़ी है।
ये रात फिर ना आयेगी,
सुन ये चाँद कह रहा है
रुक जा कुछ पल साथ चलने के लिये,
इतना ही काफ़ी है।