आख़िर कौन हूँ मैं ??
आख़िर कौन हूँ मैं ??
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चीख़ रहा है अन्तर्मन हर पल मेरा कौन हूँ मैं?
आखिर, कौन हूँ मैं, वजूद को अपने ढूँढता??
क्या महज़ इक जिस्म हूँ मैं निगाहों में पुरूष की,
या फिर इक ख़ूबसूरत, महकता सांस लेता अहसास हूँ।
परिवार में उमंग, जीवन भरता एक अहम सा हिस्सा हूँ,
या फिर केवल घर को सहारा देती बेजान दीवार हूँ।
बच्चों के सुख-दुख में शामिल हूँ कोई आया?
या फिर दुलार ममता की मूर्त, पूजनीय छांव हूँ मैं।
हर बेड़ी, रस्मों को ओढ़े, धीरे से सरकती शाम हूँ मैं,
या रिश्तों को निबाहती, दुलारती घर की शान हूँ मैं।
स्वच्छंद, उन्मुक्त हँसी हूँ या पंछी, उड़ती बादलों के उस पार हूँ।
या फिर बस हूँ एक सवाल मैं, मैं आख़िर इक सवाल
कौन हूँ मैं ??