ये कैसा प्रेम......
ये कैसा प्रेम......
फूलों से बेहद प्रेम है तुम्हें,
फिर क्यों तोड़कर अलग कर दिया उन्हें डाली से,
प्रेम है तुम्हें बादलों से,
फिर क्यों रही चाह हमेशा बूंदों की....
बरखा से प्रेम है, कहा था तुमने,
फिर क्यों छुप गये छाते में
तुम कहते हो ,सूरज से भी प्रेम है तुम्हें ,
फिर क्यों उसके आते ही ढूंढा तुमने
हमेशा छाया को।
ये कैसा प्रेम......
अब तो डर लगता है
जब तुम कहते हो
कि तुम्हें प्रेम है मुझसे।