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Nikhil Sharma

Abstract Others

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Nikhil Sharma

Abstract Others

ये बारिशें

ये बारिशें

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ये बारिशें
बेचैन कर है रही 
ये बारिशें
बूंदे जो छूती बदन को लगता है यूँ 
इन बूंदों में बस रही है बस एक तू 
तेरे करीब होने का एहसास देती 
ये बारिशें

छू के गुज़रती है जो ये ठंडी हवा 
लगता आँचल लहराके तू दौड़ी हमनवा 
आँखे बंद करके महसूस करूं 
लगता के कानों में कुछ कहती 
ये बारिशें

जो देखता हूँ मैं फिर वो आसमां 
लगता है तेरी जुल्फों का है यह समां 
जब घिर आती है यह घटाएं 
लगता है यह है तेरी अदाएं 
फिर गिरता है वो जो कतरा पानी का 
सिहरन सी दे जाती हैं 
ये बारिशें

भीगता हूँ मैं इनमें तो लगता है यूँ 
अपने आगोश में मुझको रमा गयी तू 
सिर्फ एहसास है यह जज़्बात का 
करीब न होकर भी करीब है हम इस बात का 
हर लम्हा इश्क बढ़ाती 
ये बारिशें


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