यादें~~~~~~
यादें~~~~~~
वो भी क्या दिन थे, वह बचपन के दिन थे।
वह भी क्या किलकारियां थीं, बेझिझक मुस्काने थीं।
वह भी क्या नादानियां थीं , वह तुुतलाती आवाजें थीं।
अब तो हम आ गए ऐसी कशमकश जिंदगानी मेें;
न जाने वह किलकारियां,वह ठहाके मारके हंसना,
वह दोस्तों के साथ गप्पे लड़ाना,
मानो सब इस दिखावटी दुनिया में धुल गया,
नकाबो वाले चेहरे पर वह झूठी मुस्कान आ गई।
क्या हो गया इस दुनिया को ;
अपनी किलकारियां को छोड़कर दूूसरा खुुश क्यों है , इसका जवाब ढूूंढते है!
यह कैसी जवानी , यह कैसा यौवन है,
वह बचपन की हठखेलियां तो इससे बेहतर थी।
क्यों न कुछ आदतों को छोड़कर, फिर से मुस्कराया जाए,
क्यों न अपने आप को समय के हिसाब से बदल लिया जाएं।
छोड़ देें शिकायतें सभी की करनी;
क्यों न खुद को संवारा जाए।
यही तो वह जवानी है,
जो बचपन को सहज कर ,
बड़ा होने की कहानी है।
