व्यस्त हूँ बड़ा
व्यस्त हूँ बड़ा




व्यस्त हूँ बड़ा मस्त हूँ खड़ा
है सारा बोझ मुझ पे
फिर भी अपने काम पर हूँ मैं तो अड़ा
व्यस्त हूँ बड़ा मस्त हूँ खड़ा
रात का पता नहीं, न दिन की खबर
मैं भटकता रहता हूँ इधर से उधर
काम पूरा हो या फिर रहे अधूरा
फिर भी अधूरे काम को हूँ करता चला
व्यस्त हूँ बड़ा मस्त हूँ खड़ा
जीवन के समंदर से छान के अमृत ले आऊँगा
अपने विषयुक्त हृदय को विषमुक्त बना जाऊँगा
संसार के बवंडरों से है बच के चलना
अपने नवजीवन के पथ पे हूँ मैं तो चला
व्यस्त हूँ बड़ा मस्त हूँ खड़ा
क्यों कपट रखूं, क्यों हीन भावना रखूं
मैं हूँ सरल हृदय का बस प्रेम भावना रखूं
विचलित होना सीखा हमने नहीं
अपने सुपंथ पे हूँ क्रमशः बढ़ता चला
व्यस्त हूँ बड़ा मस्त हूँ खड़ा
मैंने जानी है कुछ जीवन की व्यथायें
रोकती हैं ये लिखती हुई जीवन की कथायें
मैंने व्यस्ततम में हैं कुछ पन्ने पढ़े
जिनको प्रतिदिन हूँ मैं लिखता चला
व्यस्त हूँ बड़ा मस्त हूँ खड़ा....