वक़्त
वक़्त
वक़्त मेरे लिये कुछ निकाला करो
काम अपने सिरे सब न पाला करो
चार दिन जिंदगी के बचे अब यहाँ,
सन्तुलन अब रहे, कुछ निराला करो।
साँझ अब जिंदगी की यहाँ हो रही,
वक़्त को साध लो मन न काला करो।
तुम बहुत जी लिये दूसरों के लिये,
खुद कभी को जरा अब संभाला करो।
दौड़ती ही रही जिंदगी हर घड़ी,
थाम लो अब इसे वक़्त ढाला करो।
