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Pushpender Sharma

Abstract

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Pushpender Sharma

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वो एक सपना

वो एक सपना

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कहानी ये नही मेरी, ये है मेरे एक अपने की,

रात भर जागता ऐसे एक सपने की,

कम उम्र मे आदत पड़ी, एक इंसान का नाम जपने की,

चंद वादों का आंखों पे पर्दा, चीज़ बनके रह गई वो बस खपने की,

कोशिश बहुत की इन सब से बचने की,

पर ज़हन मे तमन्ना थी, उनके ज़हन मे छपने की,

पहले नींद नही आती थी, क्योंकि कहानी थी वो एक जगाने वाले सपने की,

पर अब चैन से सोती वो सर्द रातों मे भी,

आदत जो बना ली उसने लोगो की बातों से हाथों को तपने की,

कहानी ये थी मेरे एक अपने की,

रात भर जागता ऐसे एक सपने की।


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