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Anshika Dhingra

Abstract

4.1  

Anshika Dhingra

Abstract

वो दिन, वो बातें

वो दिन, वो बातें

2 mins
235


बड़े याद आते हैं वो दिन वो बातें 

प्यार भरी खूबसूरत सी मुलाकातें l

ना इस चीज़ की फिक्र थी ना उस चीज़ की 

मस्त अपनी ही धुन में रहते थे !!


स्कूल जाने में आनाकानी किया करते थे 

दोस्तों से पेंसिल और इरेज़र के लिए लड़ते थे I 

टीचर से एक अनोखा ही रिश्ता था 

पढ़ाई के समय मन थोड़ा भटकता था 

लेकिन क्लास में काम हमेशा चमकता था l 


बड़े याद आते हैं वो दिन, वो बातें 

रात रात तक खेलने का फितूर और

खिलौनों के खुफिया खाते l !!

वह दिन बड़े अच्छे थे 

जब हम छोटे बच्चे थे l


भविष्य का कोई बोध नहीं हुआ करता था 

कोई टेंशन नहीं मस्त अपनी ही धुन में रहते थे !!

गलियों में खेलना और नई-नई शरारते खोजना 

अगले दिन क्या नई शरारत करनी है ! इसकी कोई नई योजना l 


वो दिन, वो बातें बड़ी याद आती हैं 

वो यादें अक्सर आंखों में आंसू ले आती हैं l !! 

अब हम बड़े हो गए हैं 

हमारे व्यवहार के कुछ पहलू अब नए हैं l 

अब 

 स्कूल की इमारत को दूर से देखकर

चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है 

स्कूल की टीचर से अचानक वाली मुलाकात,

आज भी खामोश कर देती है l 


आज जब समय में पीछे देखते हैं 

तो बड़े याद आते हैं वो दिन !

जब हम मासूमियत की मूरत थे 

चाहे जितनी शरारते हों

लेकिन फिर भी मन में बुराई नहीं थी 


मां की डांट अच्छी नहीं लगी

बचपन में और आज एहसास होता है

कि उनकी हर बात सही थी l 

 अब हम बड़े हो गए हैं !

सही बुरे की समझ रखते हैं . 


बचपन में समय खूब होता था, रात को नींद बड़ी अच्छी आती थी,

सबमानो ठहरा सा लगता था l अब समय ठहरता ही नहीं है l 

ना जाने इतने बड़े क्यों हो गए हैं हम 

शायद हिम्मत बढ़ गई है सह लेते हैं बड़े-बड़े गम l 


बचपन की वह मासूमियत,

जब कोई बात पेट में नहीं टिकती थी,

पता नहीं कहां खो गई है 

वह इमानदारी वह निस्वार्थ भागीदारी ना जाने

इस जिंदगी के पथ में कहां सो गई है l 


 वो दिन वो बातें हमेशा याद आएंगी 

वो यादें अपने साथ ढेरों किस्से लाएगी

यादें अच्छी हो या बुरी हमेशा कुछ सिखाएंगी । 

हम चाहे जितने भी बड़े हो जाएं बचपन की यादें

मरते दम तक यादों के कारवां में एक अहम भूमिका निभाएंगी l


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