वो दौर ही कुछ और था
वो दौर ही कुछ और था
फ़लसफ़ा बदलते वक़्त का
रोशनी कुछ ठहरी यादों की
वो दौर ही कुछ और था
जब थी काफिराना, ये ज़िन्दगी।
जब बिन कहे ही होती थी मुक्कमल
हर ख्वाहिश मेरी
बिन मांगे ही मिलती थी
हर बार हर खुशी
वो दौर ही कुछ औऱ था
जब थी काफिराना, ये ज़िन्दगी।
चन्द पलों में ही कैसे भूल जाते
थे हर तकलीफ को
दोस्तों के साथ मिलकर
जब नापते थे हर गली
वो दोस्तों की टोली थी अपनी।
वो हर गली थी अपनी
वो तो दौर ही कुछ औऱ था।
जब थी काफिराना, ये जिंदगी
काफिराना, ये ज़िंदगी।