विनती
विनती
ये कैसा है संकट, ये कैसी भारी विपदा है,
कैसी महामारी आन पड़ी, कैसा ये काल आया है,
चहुं ओर त्राहि, शोर एवं हाहाकार है
हर सांस में आस खोजती मानव पुकार है,
प्रभु ये क्या तेरे मन में समाई
क्या कर के ये जटिल योजना बनाई,
खेल- तमाशे, सैर- सपाटे सब बंद हुए
बेबस मानव घर में यूं कैद हुए,
ऐसी लगाम तूने लगाई, ऐसा सबक सिखाया
"हर चीज की अति बुरी है"....
पाठ जो भूला , फ़िर याद दिलाया,
बूढ़े बुज़ुर्ग कहते थे जब तब बात लगती थी खारी,
खुले सारे ज़ीव- जन्तु पिंजरे में अब तेरी बारी,
है प्रभु नादान है हम, भूल हमारी दूर करो
अपने किसी चमत्कार से कष्ट सारा दूर करो।