छठे दिन की डायरी विजय पथ
छठे दिन की डायरी विजय पथ
आज फिर वही कशमकश है जिंदगी में,
कितना खुल पाएगा और कितना नहीं खुल पाएगा।
पहले औड एंड इविन के अनुसार दुकानें खुलेंगी
सवेरे से शाम तक,
सरकारी दफ्तर भी यदि खुले तो कर्मचारी भी पचास प्रतिशत होंगे।
डर और भय तो सबके दिल में ऐसे दस्तक देता रहता है,
जैसे कि कोई परिंदा खिड़की में चोट मारता हो।
पिछले महीने तो डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गईं,
पिछले महीने तो महामारी के कारण बहुत ही बुरा समय बीता था।
अब दिन पर दिन वायरस के आंकड़े कम हो रहे हैं,
जिससे थोड़ी तसल्ली हो गई है।
दिमाग ने तो काम करना ही बंद कर दिया है,
घर का सारा काम सभी लोग करते हैं,
पर कभी-कभी घर में तनाव भी हो जाता है।
जरा सा सीजनल बुखार भी आ जाता है,
तो डर सा लगने लगता है,
पर डर के आगे जीत है।
इसलिए अपनी इम्यूनिटी को स्ट्रांग रखो,
और डिस्टेंसिंग को कायम रखो।
यही एक फार्मूला अपनाना है,
जिससे हम अपने विजय के पथ पर चलते चले जाएंगे।