विदाई
विदाई
बिन ब्याही विदाई,
कैसी ये रीत सुहानी आई।
देखो आज के कलयुग में कैसी कैसी परिस्थितियां आयीं,
बेटी का करना पड़ता ब्याह के पहले ही बिदाई।
उसके उज्ज्वल भविष्य की देखो, क्या माँ बापू ने ये कीमत चुकाई
जुदा किया खुद से, आस में की रोशन भविष्य बनाये।
दिल पर पत्थर रख कर, वह भी देखो आधुनिक जग की रीत निभाये।
पलकों में सजाया जिसका बचपन, यौवन उसको दूर करावे।
बेटी भयो पराई रीत में, अब बेटों ने भी ये रीत निभाई।
बच्चे देखो जरा जो पढ़ लें, उज्ज्वल भविष्य के सपने सजाये,
घर पर देखो एक के सपने, सबकी फिर आंखों में आए।
रीत नई है पर, जज़्बात वही हैं।
पहले बेटी की करते थे विदाई, अब बच्चे होते है विदा ही।
मैं बावरी सोचती थी हमेशा काहे विदाई में आंसू बहावे,
जब डोली सजाने के, खुद माँ बाप है, सपने सजाते।
आज मैं समझ सकूं हूं, पीड़ा उस बेला की,
विदा किया घर से पर, ज़ुदा न होते दिल से जी।
सपनों की दुनिया में देखो, कदम बढ़ाते बच्चे भी,
लाडों से पले, आंखों के तारे, अब करेंगे दिन भर मेहनत भी।
बच्चों की भी विपदा देखो, अनजान शहर में घर है बसाये।
नए संगी, नई है दुनिया, पर अपनो की तो याद सताये।
माँ का दुलार, पिता का प्यार, वो भाई बहिन का लाड, याद आवे।
सखी दोस्तों के संग, जीवन के वो सुनहरे पल सताये।
भूल कर नहीं, दबा कर कहीं
वो ये एहसास, परदेस को पसारे।
आंखों में सपने, आने वाले कल के,
फिर क्यों ये आँसू बस बहते जाए।
ये पल बड़ा गमनीय है, शादी में विदाई, सा ही कुछ हसीन है।
हिदायतों संग एहतियातों का, दुआओं संग आशाओं का,
नये जीवन की आस का, बिछड़ते जीवन के एहसास का।
देखो कैसी यह परिस्थिति आई,
आँखों में सपने और आँसू भी लायी।
विदाई और जुदाई का एहसास ये लायी।
बिन ब्याही विदाई कैसी ये रीत है लायी।।
