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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational

उठो पार्थ

उठो पार्थ

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उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि

निद्रा त्यागो 

निर्भय चेतना में 

तुम जागो 

मोह का 

त्याग करो 

कुरुक्षेत्र के 

महासमर में 

निर्मम हो 

प्रहार करो।।


देख रहे हो जिन्हें 

युद्ध मे खड़े तुम्हारे 

जो सामने रिश्तो के 

बंधन में बंधे है तुमसे 

रक्त रिश्तो का 

बंधन काटो 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि

 निद्रा त्यागो।।


धर्म कर्म का 

सजा हुआ रण 

धर्म नियत का 

वर्तमान पहचानो

कुरुक्षेत्र का 

महासमर है 

देख रहा वर्तमान 

भविष्य है 

अतीत अपमान का

अंतर्नाद जगाओ 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों  कि 

निद्रा त्यागो।।


अपने अंतर्मन में झांको  

लाक्षा गृह द्रोपदी चीर 

भीम विष द्रुत क्रीड़ा 

कपट द्वंद के 

प्रतिशोध को

ज्वाला अंगार बनओ

उठो अब पार्थ 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


रिश्ते नातों के 

अधर्म मार्ग को 

कुरूक्षेत्र के 

महासमर में 

मोक्ष मार्ग 

बनाओ

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों की 

निद्रा त्यागो।।


बारह वर्षों कि 

वन पीड़ा 

कौन्तेय कि है

अग्निपरीक्षा 

कुरुक्षेत्र के 

महासमर में 

वीर गति को 

प्राप्त हुए 

देवलोक करेंगा 

वंदन स्वागत 

उठो अब 

खुले नेत्रों 

कि  निद्रा त्यागो।।


विजयी हुए तो 

नए युग का 

इतिहास लिखोगे 

युद्ध करो 

भय को त्यागो 

माया से बरबस ना 

भागो उठो पार्थ 

अब खुले नेत्रों की 

निद्रा त्यागो।।


मैं मधुसूदन 

सखा तुम्हारा 

तुम नर 

मैं नारायण 

देख पार्थ अब 

विकट अलौकिक 

दुर्लभ विराट 

स्वरूप हमारा 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


दिव्य नेत्र तुम्हे

मैं देता देख रहे 

तात भीष्म द्रोण 

धर्म धुरंधर द्वय 

जानता युग सारा 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों की 

निद्रा त्यागो।।


युग जानता है 

धर्म सत्य का 

धर्म हानि पर 

मेरे अवतरण का 

धर्म स्थापना 

मर्म का 

संत उद्धार 

कुटिल दंश का 

देखो पार्थ सत्यार्थ 

स्वीकारों 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


कृष्ण मैं 

स्वंय नारायण 

मेरे छः 

भ्राताओ का वध 

रिश्तो के कारण 

कारागार में 

अवतरण हमारा 

काल चक्र का 

चक्र सुदर्शन है 

मेरा प्यारा 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


मातु पिता के 

हाथ पांव कि बेड़ी 

अधर्म शिखर का 

मामा कंस से

युग का उद्धार 

किया नव आशा 

संचार किया 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


अपने ही रिश्तो का 

वध कर डाला 

कंस शिशुपाल 

जाने कितने 

रिश्ते नाम सबका 

उद्धार किया 

नव युग का 

शंखनाद किया 

अब भी जानो 

पहचानो 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।                                    


काल निरंतर 

चलता जाता 

ना कोई रिश्ता 

ना कोई काल का 

युग से नाता 

काल तुम्हारे संग 

चल पड़ा है 

पार्थ काल तुम्हारे 

लिए पल दो पल 

खड़ा है 

काल कर्म का 

रहस्य तुम 

समझो जानो 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


शौर्य शक्ति और 

पराक्रम दृढ़ता 

निश्चय और आचरण 

निष्काम कर्मयोग का 

अभिनंदन अभिवादन 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि

निद्रा त्यागो।।


कुरुक्षेत्र के 

महासमर मे

मेरा उद्देश्य 

पथ यही है 

मैं सारथी तुम्हारा 

अस्त्र शस्त्र ना 

हाथ उठाऊं  

हनुमत को तेरे 

रथ ध्वज बैठाऊ 

पथ विजय 

अब प्रशस्त तुम्हारा 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


युद्ध भूमि में 

उपदेश यही है 

भविष्य का 

गीता ज्ञान यही है 

जन्म मृत्यु का 

सच  यही है 

दोनो ही 

भाई भाई है 

जीवन तो 

पल प्रहर 

गति गतिमान

काल के संग 

युग जीवन 

प्राणी का

आना जाना 

उठो पार्थ अब 

खुले नेत्रों कि

निद्रा त्यागो।।


प्राण एक 

परछाई है 

काया कर्मों कि 

काई है 

ईश्वर का स्वर 

शाश्वत निरंतर 

युगों युगों का पथ 

ज्योति सत्य

उठो महा समर के 

महारथी धुरंधर 

मृत काया का 

अधर्म छाया से 

उद्धार करो 

उठो पार्थ 

अब खुले नेत्रों कि 

निद्रा त्यागो।।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीतांबर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।


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