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Hrithik Rai

Abstract

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Hrithik Rai

Abstract

उनकी अलमारी खोखली है

उनकी अलमारी खोखली है

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उस जगह, उन लोगों का

ना जाने कैसा असर था

था तो काफी छोटा,

पर उतना ही

मनोहर वो सफर था।


जब सब भीड़ में

कहीं खोने लगे थे

ऐसी हसरत देख हम भी

दुबक के रोने लगे थे

तो निकल पड़े हम भी

घर से बिना कुछ कहे

जल्दी आना

वो भी इतना ही बस कहे।


हम इस बार हर राह

अलग और गलत लेने लगे

गलत बस इस लिए क्यूंकि

हम पहले कभी

उन पर नहीं थे चले।


इस बार भी कायदे से

उन पर चलना था ही नहीं

अकेला था मैं,

और कोई वहाँ था भी नहीं।


सब अलग था,

अलग थे उसके मोड़

पर तब मैं जाना कि

हर तरफ, हर जगह,

हर दिन, ऐसे ही होते हैं

हालात और उनमे बंधे लोग।


जहां एक तरफ

हम सब जानते हैं

और दूसरी और का

हमें मालूम नहीं होता।


इसीलिए डरने लगते हैं

उस अंजाने से हालात से

जब पहुंचेगे भी या नहीं

सवाल आने लगते हैं,

उस दबी आवाज से।


अलग लगे अगर हमें कुछ

तो सुनो यारों

ज़रूर जाना

तुम क्या पता

खो जाओ, डर जाओ

बस भटक मत जाना।


जाने पहचाने सफर में

हम आगे वाले को

देख के चलते हैं

इस बार खुद से

नया रास्ता बना दो यारों।


दिखा दो सबको की

जिन ख्वाबों की आदत

सबने सजा रखी है अलमारी में

उन सबको देखा है तुमने

एक अंजाने सफर की तैयारी में।


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