ये कविता कैसे लिखते हैं?
ये कविता कैसे लिखते हैं?
कभी लिखने का भी सोचा है, वो बोले ऐसे
हाँ सोचा है, मत पूछो कैसे
तो क्या लिखना है, और कब लिखना है
जो भी लिखना है वो तय नहीं है
जो तय है वो कि अब लिखना है
तुम खुद का लेखन देख के पढ़ते
क्या याद नहीं ख़ुद क्या लिखते हो?
तुम अपने अक्षर खुद भूले हो
ये जो भी है, तुमने ही लिखा है?
हम्म... हाँ देखूँगा मैंने जो लिखा है
अरे मेरी है, मैंने ही लिखा है
पूछ लो बल्कि इस काग़ज़ से
रात में थी वो किसके घर पे,
कह देती सब सच वो तुमसे..
पर बदनामी का डर उसको है,
ग़र काग़ज़ मेरी डर जाएगी
क्या ख़ाक कभी फिर लिख पाउंगा
कलम है स्याही से वंचित जो,
क्या ख़ाक कभी उसे भर पाउंगा
कहते हैं मसरूफ वो लेखक,
लिख ना सका तो मर जाऊँगा
हाँ देखूँगा फिर से काग़ज़ को
मान लो मेरी इस आदत को
तो लिख भी लो कुछ
अरे लिखता हूँ ना
और सुनो
आज लिखूँगा ऐसा मैं,
कि नाम मेरा गुलज़ार बनेगा
खिड़की देखी काग़ज़ को,
आजा राजा निकालते हैं हम
निकल गए बेशर्मी से वो,
हस के बोले
"अबे तुझ जैसा गुलज़ार बनेगा" ?
ओहो, बेशरम थे
सही कह रहे हो
कोई बात नहीं, मन बदलो
किवाड़ लगाओ, चाय गरमाओ
और नीचे देखो
कि
इसी मोहल्ले में भागा करते थे
जो कभी नंगे पाँव,
आज भूरी माटी लाल किए हैं वो,
गुड्डा गुड़िया का जोड़ा सिलते थे जो नासमझ,
नशे में कपड़े उधेड़ रहे हैं वो।
शिकायत थी जिसको तराजू से अब तक,
अभी से वो इंसा बदल सा गया है,
बिगड़ने की सबको आदत लगी है,
सुधरने की कोशिश बहलने गई है,
घर घर पीटा, जमकर पीटा,
रात दोपहरी सबसे पूछा ऐसा की
सब बात बता दें,
सबने बोला हम बोलेंगे, कहने का
बस दाम बता दे
पूछा मैंने घर था मेरा खिड़की
जिसकी छत पे थी,
दरवाज़ा पैंचीदा था और आँगन
मेरा भीगा था,
सीढ़ी नीचे की कच्ची थी, और
पीली घर की पट्टी थी।
मैं छत के ऊपर सोता था तो खूब
मज़ा सा आता था
रोटी दूध आम और चिवड़ा सान
हाथ से खाता था
एक पौं पौं करता कुल्फी वाला शाम
को जैसे आता था
कुर्सी पे चढ़ के, सिक्का खिसका के
मैं चींख दौड़ के जाता था
वो कुल्फी बोलो कैसी है?
कभी बुरा लगा है बिना वजह,
और वजह जानने का मन भी ना हो,
पर रोने रोने सा दिल हो जाए,
कुछ करने से ये तन घबराए
मरने की पर बात क्या करना
लोगों का गुस्सा काफी है
मेरा ऐसा सा कुछ है कि
गुस्सा आग सा मुझ को इक बार ना आया
इक बार जो आया इक बात बताया
ये गुस्सा जो है, वो किस पे आया?
उसपे आया, जो आकर बोले
काग़ज़ अपनी, बेगम अपनी
बेगम का दुपट्टा अपना, बेगम का
सपना भी अपना
बेगम की बेटी.. उसकी है
बेटी का दिल ख़्वाहिश है अपना,
अगला बेटा पक्का ही है, पक्का
है तो वो भी अपना
जल्दी झांको दाई ओ बूढ़ी
गलत किया तो मिलना मत तुम
मिली अगर तुम मरी मिलोगी
दफ़न ना जाने कहीं पे नंगा..
होगा मेरा देश महान, मेरे घर में ही भगवान..