उड़ान
उड़ान
वो स्वप्न था
एक सुन्दर स्वप्न
देखा मैंने
इक खूबसूरत परी थी,
आशा के श्वेत पर लिए
निहारती आसमान
भर ही लूँ नीलगगन में
हौसले की उड़ान
घूम ही लूँ
ये सुन्दर जहान
ललक रही थी
उड़ने को तत्पर हुई
और पाया
कई अनदेखे बंधन
जकड़े हुए है उसे
मोह, ममता , राग
कर्तव्य ,कर्म ,त्याग,
कितनी डोरियाँ लिपटी हैं,
कैसे तोड़ पायेगी,
यही तो उसकी नियति है,
अंतस की व्यथा ,
आंसू बन रिसने लगी,
अरे ये क्या,
मेरी ही पलकें भीगने लगी
नींद खुल गई और पाया
ओह, ये परी मैं ही थी,
व्यथा मेरी ही मैं सुन रही थी,
फिर मैंने ,
धीरे से समेटे पँख अपने
चुपके से दे डाला उन्हें,
अपनी नन्ही बिटिया को,
अब हैं ये उसके
आशा के पर
मेरे हौसले का संबल ले
देंगे उसे ऊँची उड़ान ,
नहीं, उसे नहीं जकड़ पाएंगी
ये उलझती डोरियाँ,
स्नेह और संस्कार की,
कच्ची डोर से बंधी वो,
धरा पर रहते हुए भी
उन्मुक्त भरेगी
मनचाही उड़ान
नीलगगन में