तुम्हारे नाम
तुम्हारे नाम
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मेरे बाद भी खुश रहने का हुनर जानती हो।
कितनी मासूम हो तुम ज़माने को कहाँ जानती हो।
एक हम है जो अब तक तुम्हें अपना मानते रहे
एक तुम हो जो अब तक हमे गैरो में मानती हो।
यू तो कोई शिकवा नहीं रहा तुमसे
पर क्या तुम अब भी मुझे बुरा मानती हो।
तेरे होने के अहसास से कहाँ आज़ाद हुआ हूँ मैं
पर तुम शायद ख़ुद को मुझसे जुदा मानती हो।
जानती हो हमारे इश्क को मैने ख़ुदा माना था।
अब मुझे पता चला तुम ख़ुदा में कहाँ मानती हो।