तुम्हारा इंतज़ार
तुम्हारा इंतज़ार
अक्सर अकेले खड़े मैं अपनी खिड़की से यही देखता हूँ
की तुम गुज़रोगी मेरी गली से तो तुम्हारा दीदार करूँगा,
भले निकाह करके तुम रुखसत हो जाओ हमारी ज़िंदगी से मगर
मैं हर दिन यूँ ही खिड़की पे खड़ा तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।
अक्सर अकेले खड़े मैं अपनी खिड़की से यही देखता हूँ
की तुम गुज़रोगी मेरी गली से तो तुम्हारा दीदार करूँगा,
भले निकाह करके तुम रुखसत हो जाओ हमारी ज़िंदगी से मगर
मैं हर दिन यूँ ही खिड़की पे खड़ा तुम्हारा इंतज़ार करूँगा।