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Kritika gupta

Abstract

5.0  

Kritika gupta

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तुम्हारा एहसास

तुम्हारा एहसास

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कभी इक दस्तक होती है

तुम आते हो,

मुस्कराते हो,

पास बुलाते हो,

जब

छूने को होती हूँ,

धुआँ हो जाते हो।


कभी इक ख़्वाब उमड़ता है

तुम चित्रित होते हो

मेरी ओर हाथ बढ़ाते हो

जब

थामने को होती हूँ,

हिचकी बन जाते हो।


कभी मैं भीड़ में होती हूँ

तुम दिखते हो,

मैं ढूंढती हूँ,

पीछा करती हूँ,

जब

झलक पाने को होती हूँ,

बहरुपिया बन जाते हो।


कभी बेज़ार हो रोती हूँ

तुम प्यार बरसाते हो,

मैं भीग जाती हूँ

जब

आँसू थमने को होते हैं,

तुम मेरे बन जाते हो।



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