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Namrata Shailendra Singh

Romance

3  

Namrata Shailendra Singh

Romance

तुम और मैं

तुम और मैं

2 mins
457



कुछ आशाओं की धूल मिली

उस कमरे को जो खटकाया

चरमराती सी खिड़कियों के

शीशे पर खुद को पाया।


समय के जाले बीछे पड़े थे

मन थोड़ा सा घबराया

अपनी ही हाथों से शायद

था यह मैंने जाल बिछाया।


सोचा न था ज़िन्दगी

उस मोड़ पे भी लाएगी

अपनी ही आपबीती सुनकर

आँखें नम सी हो जाएगी ।


एक बूँद पड़ी जो शीशे पर

तो कुछ चहरे नज़र में आये

वही जानी पहचानी मुस्कराहट

जिसे घूमती हूँ आज भी ह्रदय से लगाए।


छोटा सा कमरा भरा पड़ा था

पल पल के सामान से

पैरों में चुभते जा रहे थे

टूटे शीशे अरमान के।


एक सदी जो गुज़री थी यहाँ पर 

उस सदी की क्या मिसाल दूँ 

आज भी कसक इतनी बाकी है 

की हर ख़ुशी उस पर कुर्बान दूँ।  


एक लगन लगा बैठी थी मैं

उस लगन को क्या मैं नाम दूँ

वो आगे आगे मैं पीछे पीछे

जैसे सुबह को शाम दूँ।


कुछ हसरतें टूट गयी मगर

खुद को बड़ा समझाया था

गिरते-पड़ते ,जीत-मरते

सपनो का कब्र बनाया था।


फिर क्या था? निकल पड़ी ज़िन्दगी

राहों की कहाँ कमी होती है

पर हर पथ पर चलते चलते

महसूस पैरों में नमी होती है।


आज जब खुद को सफ़ेद पाया

तो रंगों की याद खिल आयी

उन रंगों को तलाशते, आज थकी हारी

मैं इस कमरे में आयी।


एक नज़र घुमाई तो पाया

सुराही पर रखा वह गिलास

छु कर कुछ महसूस हुआ

उन होठों की नरमी का एहसास।


वह चटाई अब भी वही बिछि है

जिसपर अनगिनत पल बिताये

साँसों के टकराने की आवाज़

फिर से मेरे कानों में आये।


कुछ खिलोने , कुछ किताबें

वह टूटी हुई कुर्सी का किस्सा

एक जंग हुई थी प्यार की

वह प्यार मेरे सांसों का हिस्सा।


उस बच्चे की तस्वीर जो देखी

दिल मंद ही मंद मुस्काया

उसकी चमकती आखों में मैंने

अपना टूटा सपना पाया।


वो पान की पीक , सिगरेट के छल्ले

आज भी तैनात हैं

तुम अलग होकर भी जुदा हो न पाए

यह प्यार के करामात हैं।


कैसे कहें और किससे कहें

वह कैसे दिन और रात थे

अब जो उधार सी लगती है

वो सांसें अपने साथ थे!


उन दिनों की बात कुछ और थी

हम क्या बताएं ऐ रहगुज़र

कतरे कतरे से धो डाला

महकती रंगों का वो मंज़र।


पर साथ हमारे तुम अब भी हो 

हाँ ! नाम तुम्हारा बदल दिया 

कल तक था जिसको 'प्यार' पुकारा 

अब हर दिन पूजा में सफल लिया।




















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