ठोकरें और जिंदगी
ठोकरें और जिंदगी
ठोकरों को मत कोस,
जमीन को प्रणाम कर ...
उठ, कपड़े झाड़ और चल,
तू बिल्कुल भी मत विश्राम कर ...
धरती देती है सहारा,
हर गिरने वाले को ...
पत्थरों से बेपरवाह हो,
तू बस अपना काम कर ...
हवा का सहारा मिले तो,
धूल पहुँच जाती है आसमान पर ...
गिरकर उठने वालों में,
तू भी तो ज़रा अपना नाम कर ...
रूकावटों पर हावी रहें,
सतत कोशिशें सदा तेरी ...
मानव अपराजेय है,
सृष्टि में ये पैगाम कर ...
साँसों के रुकते ही,
सब खत्म हो जाएगा ...
जब तक जिन्दा है,
तब तक तो थोड़ी धूमधाम कर !