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Satish Chandra Pandey

Abstract

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Satish Chandra Pandey

Abstract

ठंडी हवाएं चलने लगी हैं

ठंडी हवाएं चलने लगी हैं

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बारिश की बूंदें

पड़ने लगी हैं,

ठंडी हवाएं

चलने लगी हैं।

सड़कों में बैठे हुए

बेघरों की

जीवन की साँसें

थमने लगी हैं।

समाचार पत्रों में

छपने लगा है

ठंडक से मौतें

होने लगी हैं।

देखो क्या ?

मानव तमद्दुन की बातें

सचमुच बुलंदी

छूने लगी हैं।

जो भी है फिर भी

धरातल में देखो

ठंडक से मौतें

होने लगी हैं।


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