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Rishabha Singh

Romance

3  

Rishabha Singh

Romance

तो क्या बात होती।

तो क्या बात होती।

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हमें उनसे मोहब्बत हो गई थी,

अगर उनको भी हमसे हो जाती, तो क्या बात होती।


सुनसान पड़े इस बंजर दिल मे,

अगर इश्क़ की बरसात हो जाती, तो क्या बात होती।


सारा शमां जानता है, यह हाल-ए-दिल हमारा,

अगर वो भी कुछ पहचान पाते, तो क्या बात होती।


और हमारा दिल तो उनका गुलाम सा हो गया है,

पर हमारा नाम सुनने पर वो भी थोड़ा सा शर्मा जाती, तो क्या बात होती।


इज़हार-ए-इश्क़ की साज़िश हर बार हमने ही की,

एक दफा उनकी जुबाँ भी अगर, होठों की चौखट लांघती, तो क्या बात होती।


खोज रहे थे, उनकी नज़रो में , जिगर की चाभी,

अगर वो खुद ही ताले खोल देते, तो क्या बात होती।


जख्म देने का काम तो दुनिया का है ही,

लेकिन वो मरहम बनकर आ जाते तो क्या बात होती।


और बयाँ नहीं हो पाई, जो मोहब्बत लफ्ज़ो में,

वो खामोशी अगर समझ जाते, तो क्या बात होती।


ढूंढते थे उनको ख्वाबों में, हर घड़ी, हर पल

वो भोर का सपना बनकर आ जाते, तो क्या बात होती।


संगदिल दुनिया मे, अब मोहब्बत से डर लगता है,

लेकिन वो खौफ से परे आकर, गले लगाते, तो क्या बात होती।


आज भी हमारी हर बातों में बस उनका ही जिक्र है,

अगर हिचकी आने पर, वो भी हमें याद करते तो क्या बात होती।


याद में उनकी हम कविताएं करने लगे।

एक दफा वो भी, कुछ हाल सुनते, तो क्या बात होती।


छुपा कर रखा है, उन्हें कहीं आखिरी सांस के साथ,

वो भी हमे अपनी धड़कन मे बसा लेते तो क्या बात होती।


जब तक वो रहे, हम पर अपनी नवाबी रौब चलाते रहे,

थोड़ा सा हक़ हमें भी जताने देते वो, तो क्या बात होती।


नहीं चाहता हूँ, कोई कसर छोड़ना,

लेकिन वो इस काबिल होते, तो क्या बात होती।


जो सफर शुरू किया था, आगे बढक़र उन्होंने,

अगर उसे मंजिल तक पहुंचा देते, तो क्या बात होती।


हर रात ये आँखे बस नम होकर सोईं हैं,

एक दफा, बस एक दफा, वो भी थोड़ा दर्द समझते तो क्या बात होती।


और गैरों से करते रहते हैं हम अक्सर उनका जिक्र,

आज अगर वो भी इस महफ़िल में होते तो क्या बात होती।


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