तनहाई
तनहाई
वक़्त की फिजाओं ने यूं रूख़ मोड़ा है,
उन्होंने हमें यू तन्हा सा छोड़ा है,
यूं तो परवाह बहुत थी उन्हें पहले,
पर अब उनका रवैया बेपरवाह सा है,
क्या शिकवा करें उनसे ,क्या शिकायत करें
उन्होंने तो हमे अंदर तक तोड़ा है,
तब वो लफ़्ज़ों को ना समझ पाए,ना खामोशी को
तो उनके सामने दुखड़ा भी क्या रोना ,
लो आज फिर वक़्त की फिजाओं ने रुख़ मोड़ा है
उन्होंने हमें यूँ .....
एक वो दौर था,,तब वो हमारी आंखे भी पढ़ लिया करते थे
हम चुप हों तो वो रो दिया करते थे,..
और एक आज का दौर है,, और हमें यकीन है
अगर हम आज मर भी गए
तो वोहमें अपने आखरी दीदार को भी तरसा देंगे ,
अब क्या कहें ,,
कि वक़्त की फिजाओं ने....
चलो छोड़ो यार,,
तब किसी को परवाह ही नहीं तो किसी से क्या कहना,
वो अपनी जगह सही है और हम अपनी,
तो फिर किसी से शिकवा ही क्या करना,
हमें ऐतबार है अपने इंतजार पर, के एक दिन हमें खो देने के बाद वो जरूर बोलेंगे,
सब मिला ऐ जिंदगी, पर उस जैसा हमसफ़र ना मिल सका,,,फिर कहीं,
फिर वक़्त की फिजाओं ने रुख़ मोड़ा,
उन्होंने हमें यूँ,,....।

