तबाही तबाही जहाँ देखो वहाँ है तबाही
तबाही तबाही जहाँ देखो वहाँ है तबाही
तबाही तबाही जहाँ देखो वहाँ है तबाही
जिसको देखो वो कर रहा है तबाही
शहर मे पेङ काटते है घर बनाने के लिए
जाने कितना पेङ काटते है झूठा जन्नत बनाने के लिए
कारखाने से पानी छोङ रहे है कितने वर्षो से
पानी के भीतर सब मर रहे है जाने कितने जमाने से
स्कूल मे सभी पढते है और पढाते है पर्यावरण के बारे मे
सूनापन और तन्हाई रह गया है धरती के ऑचल मे
करता है पेङ हमारी सुरक्षा देता है जीवन दान
आशियाना बनाने के लिए हम ले लेते है उसकी जान
पर्यावरण दिवस पर हम शौक से पेङ लगाते है
कुछ समय पश्चात उसे काट फेंकते है
तकनीक मे और विग्यान मे दुनिया बढ़ रही है आगे
किस्मत का ताला खुल जाये फिर भी सोहरत के पीछे भागे
ईश्वर भी खुद को कोसता होगा
अपनी बनायी दुनिया को बिखरता देख रो रहा होगा
बढ़ता जा रहा है पाप का साम्राज
धीरे-धीरे घटता जा रहा है धर्म परोपकार और लाज।