तारीफ़
तारीफ़
गीत गाना सबके हित में नहीं
फिर भी गीत सभी लोग गाते हैं
लोग उसकी ही प्रशंसा क्यों नहीं कर पाते हैं
क्यों सभी लोग कवि क्यों नहीं बन पाते हैं
दूसरे के तकलीफ में या दूसरों के सामने
झूठी-मूठी तारीफ़ करते हैं
और फिर बाद में कतराते हैं
क्यों नहीं सभी लोग गीत गा पाते हैं।
