स्वयं की पहचान
स्वयं की पहचान
अंतर मन में झांका क्या हूँ मैं
स्वयं की पहचान हुई आज ।
झूठ और फरेब से नफ़रत है मुझे,
कड़वा और सच बोलना आता है मुझे ।
चापलूसी, जी हुजूरी नहीं आती मुझे,
जो जैसा दिखता है मुंह पे बोलती हूं मैं ।
भावुक होकर ठोकर खाई बहुत है
फिर भी फर्ज निभाने से पीछे मुड़ी नहीं मैं ।
आता नहीं मीठे-मीठे बोल बोलना मुझे,
में जैसी हूँ वैसी ही रहना है मुझे ।
मनोमंथन करके खुद को पहचाना मैंने,
स्वयं की पहचान से खुद को जाना मैंने ।