स्वरचित मौलिक :मेरा मन
स्वरचित मौलिक :मेरा मन
मेरा मन न जाने क्यों?
पवन संग उड़ना चाहे
घटाओं संग बरसना चाहे
कोयल संग कूकना चाहे
फूलो संग महकना चाहे
मेरा मन न जाने क्यों ?
आसमानों पर घर बनाऊँ
चांद तारों संग टिमटिमाऊँ
सुबह की बेला जब आए
सूरज संग किरणें फैलाऊ
आशाओं के फूल खिलाए
मेरा मन न जाने क्यों ?
धरा ओढ़े धानी चुनरिया
मेरा मन हो जाए बावरिया
मिट्टी की सोंधी खुशबू आए
मन का आंगन पुलकित हो जाए
मधुर वाणी से अमृत बरसाए
मेरा मन न जाने क्यों ?