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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

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Meena Mallavarapu

Abstract Inspirational

सवाल सवाल ही रहा...

सवाल सवाल ही रहा...

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एक अंत और एक शुरुआत है तय

इस कड़ी को तोड़ सके न कोई

निश्चित है हर होनी की एक लय

भला सही बुरा सही,फ़र्क न कोई

निरंतर जुड़ती रहे,रोके न उसे  प्रलय


स्पंदन है सृष्टि का अनुपम उपहार

अनंत सृष्टि से पनपे क्षणिक जीवन अनूठा

ख़ूबसूरत,इन्द्रधनुषी रंगो से सजा

आश्चर्यचकित करती उसकी रचनात्मकता

नहीं लेशमात्र संशय कभी मन में उपजा


कि सृष्टि से हार नहीं होती है हार।

न यह शुरुआत अपने हाथ,न ही अंत

बस कुछ दिन का बसेरा यहां

कह गए ज्ञानी,साधु,मुनि और संत

कोई न जाना यहां से कहां


क्या होगा अपनी कहानी का अंत

बंजारे हम कैसे टिकेंगे यहां।

हो जाता मन उद्विग्न मगर बार बार

जानना चाहे जीवन का सार

पोथी पर पोथी सुलझा न सकी सवाल दो चार

सृष्टि की उदासीनता ने किया तार तार


मैं मुस्कुराई भी कभी, रोई भी कभी ज़ार ज़ार

सवाल वहीं का वहीं -ढो रही मैं भार !


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