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Nitu Mathur

Abstract

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Nitu Mathur

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स्वाधीन

स्वाधीन

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स्वाधीन भारत के हुए पूर्ण पचहत्तर वर्ष 

झूमते गाते हर्षित मन सब मना रहे हैं पर्व,


शहीदों को सलाम करते पराक्रमी जहाज़

बजा रहे बिगुल जैसे सतरंगी गगन है आज,


मैं नारी सोचूं हर पल कब होंगी मैं भी आजाद

डर पीड़ा दुःख व्यथा लालसा


जकड़े हुए हैं अब तक आज

नहीं महफूज़ अपने ही घर में 


बाहर का तो छोड़ो हाल

क्यूं हैं सब कहां है मेरे रक्षक 


किस स्वाधीनता की कर रहे बात

मां बहन बेटी की रक्षा क्यूं है बड़ी चुनौती आज


कैसा दिवस मना रहे आज

किस स्वाधीनता की कर रहे हैं बात।


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