सुकून-ए-जिंदगी
सुकून-ए-जिंदगी
ढूंढ़ा हैं तुझे भिरभिरती नजरों से
गुमसूम से पहाड़ों में
गुनगूनाती नदियों में
ठंडी सी वादियों में।
कंपकंपाती सर्दीयों में
सुनसान से जंगलों में
रिश्तों की प्यार भरी दंगलों में
गुलजार की शायरियों में।
रात में
चुपके से लिखी डायरियों में
कड़ी तपन बाद वाली पहली बौछार में
मीठी सी झुठीमूठी तकरार में
दिल की अगन में
आंखों की तपन में।
शोहरत में
पैसों की खनखनाहट में
मासूमसी मुस्कुराहट में
कच्ची कलुयों में
तंग गलियों में।
इशारों वाली नजर में
सफेद बालों वाली उम्र में
दोधारी तलवार में
अपनों ने कियें वार में
दिल के गहरे जख्म में
हौले से लगाये हुये मरहम में
बंटवारे वाले हिस्सों में
बचपन के प्यारे किस्सों में
सदियों से चलती चुप्पी में
शरारत भरी हुक्की में
महलों की गोदाम में
झोपड़ी के शाम में
बाप की फनकार में
घूंघरू की झनकार में
सौतेली माँ में
माँ की दुआ में
पलकों के सपनों में
दूर जाते हुए अपनों में
हर जगह ढूंढा तुझे
जबकी तू बसा है मुझमें
हाँ बरसो से फिर भी
मैं कहता फिर रहा
तलाश हैं तेरी
तलाश हैं तेरी।