सु– शांत
सु– शांत
बहुत बड़ी चीज़ है
जो उसने कर ली !!
काश कोई वजह भी जाने,
क्यूं खुदखुशी ही उसने अपने सर ली !!
जीता - जागता खेलता इंसान
गुमनामी में ही बस रह गया !!
जिंदगी को जीना का सालीका जिसने सिखाया,
वो खुद में जीना भूल गया !!
जिसने किरदार निभाए खुशमिजाज होने के !!
उसने कभी असल जिंदगी में खुशी को महसूस ही नहीं किया !!
बस यहीं तक अगर था सफर उसका,
तो खुदा ने ये सही नहीं किया !!
आगे जाना था उसे बहुत
ये बीच में कैसी अर्चन डाल दी,
जो खुद जिस चीज़ के खिलाफ था
खुदा उसे उसी तरह तूने मौत दी !!
काश तुम लौट आओ
ये एक पिता की आखिरी ख्वाइश है...
जो अब मुमकिन नहीं,
बस खाली एक गुंजाइश है!
खुल के जो बताता वो
तो तुम सब मज़ाक बनाते !!
"ध्यान साधक" का नाम लगाके,
खुद को बहुत समझदार पाते !!
काश कोई होता
जो उसकी अनकही आवाज़ को उस सुबह सुन लेता
ना खोया होता हमने भी उसे
अगर कोई इतनी गहराई में ये बात लेता !!
अब जो खोया है हमने एक सितारा
न आएगा वो अब लौट कर दोबारा
बस इतनी सी बात का ख्याल रखना दर–बदर
के कोई और सितारा न टूटे इस कदर
हर इंसान के पास तकलीफ होती है
जिसे शायद समझने वाला कोई नहीं,
अब हर शक्स के पीछे वो साया बन के चलेगा
के ऐसा कदम न उठाए फिर कोई भी।
याद रखना उसे, और उसकी उस मुस्कान को
गलती की है उसने, पर मकसद नहीं था उसका ये !!
और अब बस क्या कहूँ
जिंदा दिल्ली रहेंगे तुम हर इंसान में ।
