स्त्री
स्त्री
तुम पहले जैसी नहीं हो कमजोर ,
न हो तुम पहले जैसी अनपढ़ ।
तुम तो हो आधार परिवार का,
तुम हो नयें रूप में साहसी स्त्री ।
तुमने संभाली घर की कमान,
बाहर काम कर बनी आत्मनिर्भर ।
दोनों छोरों को तुमने संभाला,
जैसे हो तुम में दस हाथों का बल।
तुम में इतनी है क्षमता
कलम से लेकर जहाज़ चलाने की ।
बुद्धिबल तुम में है भरपुर,
तुम हो स्त्री रूप में कोई वीर शूर ।
नहीं करूंगी कोई अपमान सहन अब,
दहेज़ के लालचियों को सिखाती सबक।
गलत इरादों को मन में न करने देना वास,
मैं अपने इन हाथों से करती सबका नाश।
हर क्षेत्र में मैंने पाँव पसारे,
अंतरिक्ष में जाकर तोड़े तारें ।
जमीन पर रह कर देश की रक्षा की ठानी,
नहीं करने दूंगी दुश्मन को अपनी मनमानी ।
पढ़ा ही होगा इतिहास हमारा,
वीर रस से हर पन्ना है भरा।
वर्तमान में भी कुछ कम नहीं,
ऐसी है आज की सुन्दर स्त्री ।