मैं सोचती हूँ
मैं सोचती हूँ
मैं सोचती हूँ
कल को अगर
बड़ी गाड़ी हो गयी
बड़ा घर हो गया
तो कहीं उन आंखों से
रिश्ता टूट न जाए
जो सड़क के किनारे
अपना दर्द हाथों में
लिए बेचते हैं
जो क़दम उनके
क़रीब से गुज़रते थे
उन्हें महसूस करते हुए
तो कभी-कभी दर्द
ख़रीदते हुए
कहीं वो निरीह न हो जाएं
ऐसा नहीं मुझे ख़ुद पर
भरोसा नहीं है
मगर मैं डरती हूं
कहीं हवाओं की तेज़ रफ़्तार में
वक़्त ठहरने का
मौक़ा ही न दे।