स्त्री
स्त्री
हाँ, माना पुरुष महान हैं और ये भी की वे घर की शान है ।
पर क्या स्त्री होना आसान है?
घर का चिराग जलता रहे इसलिए वह खुद दिया बन जाती है।
अपनों को कोई आंच न आए इसलिए खुद ढाल बन जाती है।
पुरुष घर के बाहर पर घर के अंदर का सारा काम खुद ही
निभाती है।
अरे! कभी माँ, कभी पत्नी, तो कभी बेटी और कभी
बहन बन कर सारा दुख चुटकियों मे ले जाती है।
सारे ताने, सारी डांट बस आँखें नीचे कर सुनती रहती है।
रिश्तों में कोई कड़वाहट न आए इसलिए सारा
विष खुद ही पी जाती है।
गर्मी की चमचमती धूप मे छाया बन जाती है
और कभी कड़कड़ाती सर्दियों में सुनहरी सुबह बन जाती है।
होते तो सब साथ है मगर वह हर मर्ज़ की दवा बन जाती है।
अरे! हर कोई इतना महान नहीं होता, स्त्री होना आसान नहीं होता।