सपना
सपना
बचपन में सोचा था बड़े हो जाएंगे ,
औरों की तरह हम भी कुछ कर जाएंगे ,
सोचा था देश को खुशहाल करेंगे ,
घर में खुशियों की भरमार करेंगे ,
सोचा था भूखे को रोटी खिलाएंगे ,
देश में गरीबी को हम मिटाएंगे ,
बचपन में सोचा था बड़े हो जाएंगे,
औरों की तरह हम भी कुछ कर जाएंगे।
सपने थे हमारे कई ढेर सारे,
औरों से प्यारे, सब से निराले,
सोचा था हम कुछ कर के जाएंगे,,
बड़े होकर सब को खुश कर जाएंगे।
वो दिन भी आया जब हम बड़े हो गए,
पढ़ लिख कर हम ग्रेजुएट हो गए।
सोचा था हमने अब हमारी बारी है,
देश को खुशहाल करना हमारी जिम्मेदारी है,
बचपन का सपना वो यौवन में टूट गया,
सपना था वो सलोना ,सपना ही रह गया।
सोचा था हम खुशहाली लायेंगे,
बचपन के दौर से जब हम गुजर जायेंगे।
पर अब तो ये हाल है की बेहाल है हम,
दूसरों पर अपनी रोटी के मोहताज हैं हम।
हमारी ही फिकर रहती है अब सबको,
कहीं भटक ना जाए ,विदा करें चलो इसको।
बदला समाज फिर भी मानसिकता पुरानी,
शिक्षा अनिवार्य पर , पराई होत बिटिया रानी।
सपने उसके देखो मुरझाए कली से,
सोचा था उसने भी,पैसे कमाएंगे,
रोटी खिलाएंगे, जब बड़े हो जाएंगे।
बचपन में सोचा था बड़े हो जाएंगे,
औरों की तरह हम भी कुछ कर जाएंगे।
बचपन में सोचा था जब हम बड़े हो जाएंगे।